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________________ निरुक्त कोश ७८४. दरिसण (दर्शन) दिस्सति जेण पस्सति वा तं दरिसणं। (आचू पृ १२६) दृश्यते तत्त्वमस्मिन्निति दर्शनम् । (उशाटी प ५५६) जिससे तत्त्व देखा-जाना जाता है, वह दर्शन/अर्हत्-वाणी ७८५. दव्व (द्रव्य) द्रवते द्रूयते वा द्रव्यम् । जिसके पर्याय बदलते रहते है, वह द्रव्य है। द्रवति-स्वपर्यायान् प्राप्नोति क्षरति च, द्रूयते गम्यते तैस्तैः द्रव्यम् । जो पर्यायों के लय और विलय से जाना जाता है, वह द्रव्य है। द्रवति-गच्छति तांस्तान् पर्यायविशेषानिति द्रव्यम् । (सूचू १ पृ ५) जो विशेष पर्यायों को प्राप्त करता है, वह द्रव्य है । ७८६. दक्विकर (दर्वीकर) द:--फणा तत्करणशीला दीकराः। (जीटी प ३९) जो दर्वी/फण करते हैं, वे दर्वीकर/सर्प हैं । ७८७. दसवेकालिय (दशवैकालिक) विगते काले विकाले दसकमज्झयणाण कतमिति दसवेकालियं ।' जिसके दस अध्ययन विकाल में रचे गए हैं, वह दशवकालिक (सूत्र) है। चउपोरिसितो सज्झायकालो तम्मि विगते वि पढिज्जतीति विगयकालियं दसवेकालियं । (दक्षचू पृ ३) १. मणगं पडुच्च सेज्जभवेण निज्जूहिया दसज्झयणा । वेयालियाइ ठविया तम्हा दसकालियं णामं ॥ (दनि १५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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