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________________ १५० निरुक्त कोश ७७८. सणावरण (दर्शनावरण) दर्शनं–सामान्यावबोधस्तदाप्रियते अनेनेति दर्शनावरणम् । (उशाटी प ६४१) दर्शन/सामान्य अवबोध जिसके द्वारा आवृत होता है, वह दर्शनावरणीय (कर्म) है। ७७६. दगवीणिया (दकविनीता) विणयति जम्हा उदगं दगवीणिय भण्णते तम्हा ।' (निभा ६३४) जिससे दक/पानी ले जाया जाता है, वह दकविनीता/जल प्रणालिका है। ७८०. दढप्पहारि (दृढप्रहारिन्) निक्किवं पहणइति दढप्पहारी। (आवहाटी १ पृ २६२) जो निर्दयता से प्रहार करता है, वह दृढप्रहारी (चोर) है । ७८१. दप्पणिज्जा (दर्पणीया) दर्पयतीति दर्पणीया। (प्रज्ञाटी प ३६६) जो दर्प/उन्माद पैदा करती है, वह दर्पणीया (शराब) है । ७८२. दमअ (द्रमक) भोयणनिमित्तं घरे घरे द्रमति गच्छतीति दमओ। (दअचू पृ १६८) जो भोजन के लिए घर घर भटकता है, वह द्रमक/ भिखारी है। ७८३. दया (दया) दोयत इति दया। (आचू पृ २७०) जिसके द्वारा सहानुभूति प्रगट की जाती है, वह दया है । १. 'दगं' पाणी तं 'वीणिया' वाहो, दगस्स वीणिया दगवीणिया। . (निचू २ पृ ३६) २. 'दया'का अन्य निरुक्त-- दयन्तेऽनया दया। (अचि पृ ८६) जिसके द्वारा प्राणियों की रक्षा की जाती है, वह दया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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