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________________ निरुक्त कोश ७७२. दंत ( दान्त) दान्तः यः पापेभ्यः उपरतोऽथवा दान्तोनाम इन्द्रियदमेन नोइन्द्रियदमेन च । ' ( व्यभा १० टी प ६० ) जो पाप से उपरत है, वह दान्त है । जिसने इन्द्रिय और मन का दमन / उपशमन किया है, वह दांत है । ७७३. दंतवक्क ( दान्तवाक्य ) दम्यन्ते यस्य वाक्येन शत्रवः स भवति दान्तवाक्यः । चक्रवर्ती है । ७७४. दंतसोहण ( दन्तशोधन) जिसके वचनों से शत्रु का दमन होता है, वह दांतवाक्य / दंता सोहिज्जंति जेण तं दंतसोहणं । ७७५ दंस ( दंश ) दशन्तीति दंशाः । ( दजिचू पृ २१६ ) जिससे दांतों का शोधन होता है, वह दन्तशोधन / दतून है । जो काटते हैं, वे दंश / डांस / मच्छर हैं । ७७६. दंसण (दर्शन) १४६ Jain Education International -- ७७७. दंसण (दर्शन) ( सूचू १ पृ १४८ ) दृश्यन्ते श्रद्धीयन्ते पदार्था अनेनास्मादस्मिन् वेति दर्शनम् । ( स्थाटी प २१ ) जिसके द्वारा पदार्थों पर दर्शन / श्रद्धान किया जाता है, वह दर्शन / दृष्टि है । For Private & Personal Use Only ( उशाटी प ८२ ) दृश्यतेऽनेन सामान्यरूपेण वस्त्विति दर्शनम् । ( उशाटी प २१० ) जिसके द्वारा वस्तु के स्वरूप का सामान्य दर्शन / बोध होता है, वह दर्शन है । १. दाम्यतीति दान्तः । ( शब्द २ पृ ७०१ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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