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________________ १४६ ७५४. तुम्नवाय ( तुन्नवाय ) तुन्नं त्रुटितं वयति--सिव्यति यः स तुम्नवायः । ७५५. तुलणा (तुलना ) तोत्यते परीक्ष्यते आत्मा यया सा तुलना ।" जो फटे हुए को सीता है, वह तुन्नवाय / दर्जी है । ७५६. इच्छिय ( चैकित्सिक) चिकित्सा चरति जीवति वा चैकित्सिकः । ( प्रसाठी प ११९ ) जिसके द्वारा स्वयं को तोला जाता है, वह तुलना / तुला है । वह चिकित्सक/ वैद्य है । ( बूटी पू ५७१ ) जो चिकित्सा से आजीविका चलाता है / जीवित रहता है, ७५७. तेण (स्तन) द्यते येन तुतं । स्त्यायत इति स्तेनः । जो धन को बटोरता है, वह स्तेन / चोर है । जो समूहरूप में रहता है, वह स्तेन / चोर है । ७५८. तो (तोत्र) ७५. थंडिल ( स्थण्डिल) Jain Education International निरुक्त कोश ( नंटी पृ १३९ ) थाणं ददातीति थंडिलं । जो व्यथित करता है, वह तोत्र / चाबुक / दोष है । स्तनयति स्तेनः । ( अचि पू८६ ) जो चुराता है, वह स्तेन है । (स्तेनन् - धोयें) (उच् पृ १६० ) For Private & Personal Use Only ( उच्च पृ ४२ ) ( आचू पृ २८६ ) जो स्थान प्रदान करता है, वह स्थण्डिल (भूमी) है । १. सवेण सत्तेण सुत्ते, एगत्तेण बलेण य । तुला पंचहा वृत्ता, जिणकप्पं पडिवज्जओ । ( वृनि १३२८ ) २. 'स्तन' का अन्य निरुक्त www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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