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________________ निरुक्त कोश ७६०. थंभ (स्तम्भ) स्तम्नातीति स्तम्भः । जो स्तब्ध करता है, वह स्तम्भ / मान है | ७६१. थल ( स्थल) तिष्ठति तस्मिन्निति स्थलम् । जहां ठहरा जाता है, वह स्थल है । ७६२. थलयर (स्थलचर ) स्थलं - निर्जलो भूभागस्तस्मश्चरन्तीति स्थलचराः । ७६३. थावर (स्थावर ) तिष्ठतीति स्थवराः ।' जो स्थितिशील हैं, वे स्थावर हैं । ७६४. थिर (स्थिर) तिष्ठतीति स्थिरः । जो स्थल / भूमि पर चलते हैं, वे स्थलचर ( प्राणी ) हैं । जो ठहरता है, वह स्थिर हैं । ७६५ थिरीकरण ( स्थिरीकरण) Jain Education International वाणी और क्रिया का सहयोग देकर पुन: संयम में स्थिर करना स्थिरीकरण है । ७६६. थीद्धि (स्त्यानद्धि / स्त्यानगृद्धि ) १४७ ( दजिचू पृ ३० ) ( उच्च् पृ २०५ ) ( उशाटी प ६६८) वयण किरिया सहायत्तेण जं संजमे थिरं करेतित्ति थिरीकरणं । For Private & Personal Use Only (सूच १ पृ ४७ ) ( सू १ १४५ ) इद्धं चित्तं तं थीणं जस्स अच्चंतद रिसणावरणकम्मोदया सो थीणद्धी । ( निचू १ पृ ५५ ) ( निचू १ पृ १८ ) संयमच्युत व्यक्ति को १. स्थावरनामकर्मोदयात् तिष्ठन्तीत्येवंशीलाः स्थावरा:- पृथिव्यादयः । ( स्थाटी प ३६ ) २. जह उदगम्मि घए वा थीणम्मि णोवलब्भए किंचि । इद्धं चित्तं भणति तं थीगं तेण थीणद्धी || ( जीतभा २५२६ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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