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________________ १२६ निरुक्त कोश ६४७. णिक्कम्मदंसि (निष्कर्मशिन्) णिक्कम्माणं पस्सतीति णिक्कम्मदंसी। (आचू पृ ११३) __जो निष्कर्म/मोक्ष को देखता है, वह निष्कर्मदर्शी है । ६४८. णिक्करुण (निष्करुण) निर्गता करुणा-दया यस्मादसौ निष्करुणः। (प्रटी प १५) जो करुणा/दया से रहित है, वह निष्करुण/क्रूर है । ६४६. णिक्खेव (निक्षेप) गहणं आदाणं ती होति णिसद्दो तहाहियथम्मि । खिव पेरणे व भणितो अहिउक्खेवो तु णिक्खेवो ॥ (जीतभा ८०९) 'नि' शब्द के तीन अर्थ हैं-ग्रहण, आदान और आधिक्य । 'क्षेप' का अर्थ है--प्रेरित करना। जिस वचनपद्धति में नि/ अधिक क्षेप/विकल्प हैं, वह निक्षेप है । निक्षिप्यतेऽनेनेति निक्षेपः। नियतो निश्चितो क्षेपो निक्षेपः। (सूचू १ पृ १७) जिसका क्षेप/स्थापन नियत और निश्चित होता है, वह निक्षेप है। ६५०. णिगम (निगम) नयन्तीति निगमाः। (उचू पृ ६६) जहां नाना प्रकार के पदार्थ ले जाए जाते हैं, वह निगम/ व्यापारिक स्थल है। निगमयन्ति तस्मिन्ननेकविधभाण्डानीति निगमः । (उशाटी प ६०५) जहां अनेक प्रकार के पदार्थ विक्रयार्थ आते हैं, वह निगम ६५१. णिगाइय (निकाचित) नितरां काचनं--बन्धनं निकाचितम् । (स्थाटी प २१५) जो निश्चित बन्धन है, वह निकाचित (बंध) है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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