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________________ ११३ निरुक्त कोश ५७६. जणणी (जननी) जनयति-प्रादुर्भावयत्यपत्यमिति जननी। (उशाटी प ३८) जो सन्तान को उत्पन्न करती है, वह जननी है। ५८०. जणवयपाल (जनपदपाल) जनपदं पालयतीति जनपदपालः। (राटी पृ २४) जो जनपद का पालन करता है, वह जनपदपाल है । ५८१. जन्न (यज्ञ) . जयंते यजंति वा तमिति यज्ञः।' (उचू पृ २११) जिससे (देवों को प्रसन्न किया जाता है, वह यज्ञ है। जिसमें (देवता की) पूजा की जाती है, वह यज्ञ है। ५८२. जय (जगत्) अतिशयगमनाज्जगत् । (भटी पृ १४३२) जो निरन्तर गति करता है, वह जगत्/जीव है । ५८३. जरा (जरा) णरा जिज्जति जेण सा जरा। (आचू पृ १०७) जिससे मनुष्य जीर्ण होता है, वह जरा/बुढापा है। ५८४. जराउय (जरायुज) जराउवेढिता जायंति जराउजा। (दअचू पृ ७७) जो जरा/झिल्ली से वेष्टित होकर जन्मते हैं, वे जरायुज ५८५. जलण (ज्वलन) जलतीति जलणो। (अनुद्वा ३२०) जो जलता है, वह ज्वलन/अग्नि है। ५८६. जलयर (जलचर) जले चरन्ति-भक्षयन्ति चेति जलचराः। (उशाटी प ६६८) जले चरन्ति-पर्यटन्तीति जलचराः। (प्रसाटी प २८६) जो जल-जीवों का भक्षण करते हैं, वे जलचर हैं। जो जल में पर्यटन करते हैं, वे जलचर हैं। १. इज्यते यज्ञः। (अचि पृ १८२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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