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________________ निरुक्त कोश ५८७. जल्ल (दे) जायते लीयते वा जल्लं । (उचू पृ ८०) जो उत्पन्न होता है, चिपकता है, वह जल्ल/ मैल है । ५८८. जवणाली (यवनाली जीए णालीए जवा वाविज्जति सा जवणाली। (आवचू १ पृ ५६ जिस नलिका के द्वारा यव जौ बोए जाते हैं, वह यवनालिका है। ५८६. जस (यशस्) · अश्नुते सर्वलोकेष्विति यशः । (उचू पृ १६७) जो सारे लोक में व्याप्त होता है, वह यश है। ५६० जहक्खाय (यथाख्यात) अहसदो जाहत्ये आङोऽभिविहीए कहियमक्खायं । चरणमकसायमुदितं तमहक्खायं जहक्खायं ॥ (विभा १२७६) यथातथ्येन अभिविधिना वा यत् ख्यातं-कथितं अकषायचारित्रमिति तत् अथाख्यातम् । जो यथार्थ में अकषायचारित्र आख्यात/कथित है, वह यथाख्यात (चारित्र) है। सर्वस्मिन् जीवलोके ख्यातं-प्रसिद्धमकषायं भवति चारित्रमिति तथैव यत्तत् यथाख्यातम् । (प्रसाटी प २६२) जो सारे लोक मे अकषायचारित्र के रूप में ख्यात/प्रसिद्ध है, वह यथाख्यात है। ५६१. जायतेय (जाततेज) तेजेण सह जायति जायतेनो। जो तेज के साथ प्रादुर्भूत होता है, वह जाततेज/अग्नि है । जायमाणस्स वा तेजः जाततेजो। (दश्रुचू पृ ७४) जो प्रादुर्भूत होने पर तेजस्वी होता है, वह जाततेज/ अग्नि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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