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________________ ११२ इज्यन्ते पूज्यन्ते इति यक्षाः । जिनकी पूजा की जाती है, वे यक्ष हैं । ५७४. जग (जग) ५७५. जग ( जगत् ) जायत इति जगत् । ' जगति विद्यन्ते ये, जायन्त इति वा जगाः । जो जगत् में विद्यमान हैं, वे जग / जन्तु हैं । जो उत्पन्न होते हैं, वे जग / जंतु हैं । जो उत्पन्न होता है, वह जगत् है । ५७६. जगसव्वसि (जगसर्वदर्शिन् ) जगे सव्वं पस्सतीति जगसव्वदंसी । ५७७० जडा (जटा ) जायत इति जडा । ५७८. जण (जन ) Jain Education International निरुक्त कोश " ( उशाटी प १८७ ) जो जगत् में सब कुछ देखता है, वह जगसर्वदर्शी है । १. ' जगत्' का अन्य निरुक्त गच्छतीत्येवंशीलं जगत् । (अचि पृ ३०६ ) जो निरंतर गतिशील है, वह जगत् है । ( सू १ पृ २०३ ) (उच्च् पृ १३८) जो तपस्वी के या तपस्या में उत्पन्न होती है, वह जटा है । ( सूचू १ पृ १४६ ) For Private & Personal Use Only ( सूच १ पृ ६८ ) जति जाइस्संति य जाणंति वा कम्माणि जणा । ( आचू पृ २३२) जो कर्म - संस्कारों को उत्पन्न करते हैं, करेंगे, वे जन हैं । जो कर्म - संस्कारों को जानते हैं, वे जन हैं । २. (क) जायते तपसि जटा । (अचि पृ १८१ ) (ख) 'जटा' का अन्य निरुक्त जटति परस्परं संलग्ना भवतीति जटा । ( शब्द २ पृ ५०३ ) परस्पर उलझे हुए केशों की संहति को जटा कहते हैं । ( जट् - संहतौ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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