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________________ निरक्त कोश कुजे-वनगहने रमते-रतिमाबध्नातीति कुञ्जरः । (जीटी प १२२) जो कुंज/गहनवन में रतिक्रीडा करता है, वह कुंजर/हाथी ४२०. कुंथु (कुन्थु) ___ कु-भूमी तस्यां तिष्ठतीति कुंथु। (दश्रुचू प ६५) जो कु-भूमि में रहता है, वह कुंथु/सूक्ष्म प्राणी है। ४२१. कुंभ (कुम्भ) को भातीति कुम्भः। (सूटी २ प १८६) जो कु/पृथ्वी पर प्रतिष्ठित सुशोभित होता है, वह कुंभ है । कुम्भनात् कुम्भः। __ (अनुद्वामटी पृ १२५) को उम्भनात् कुस्थितपूरणात् कुम्भः। (नंटि पृ १६०) जिसे पृथ्वी पर स्थित कर भरा जाता है, वह कुम्भ/घट है। ४२२. कुकुटी (कुकुटी) कुत्सिता कुटी कुकुटी। (व्यभा ८ टी प ५७) जो कुत्सित पदार्थों से भरा हुआ कुटीर है, वह कुकुटी/ शरीर है। ४२३. कुक्कुय (कुत्कुच) कुञ्चति भ्रूनयनौष्ठनासाकरचरणवदनविकारैः संकुचतीति कुत्कुचः। __ (प्रसाटी प ७७) जो शरीर के विभिन्न अवयवों को विकृत कर, उनका संकोच-विकोच करता है, वह कुत्कुच/चपल है। १. 'कुम्भ' के अन्य निरुक्तकायत्यम्भसा भ्रियमाणः कुम्भः, कैरुम्भ्यते वा कुम्भः। (अचि पृ २२६) जो जल से भरे जाने पर शब्द करता है, वह कुम्भ/घट है। जो कं/जल से भरा जाता है, वह कुम्भ/घट है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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