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________________ निरुक्त कोश ४१५. किरियावादि (क्रियावादिन्) क्रियांवदितुं शीलं येषां ते क्रियावादिनः। (सूटी २ प ८१) जो केवल क्रिया प्रवृत्ति का ही कथन करते हैं, वे क्रियावादी हैं। ४१६. किरियावादि (क्रियावादिन) क्रियां-जीवाजीवादिरर्थोऽस्तीत्येवंरूपां वदन्तीति क्रियावादिनः। (स्थाटी प २५८) जो क्रिया/जीव आदि पदार्थों का अस्तित्व स्वीकार करते हैं, वे क्रियावादी/आस्तिक हैं। ४१७. किलेस (कलेश) क्लिश्यन्ते-बाध्यन्ते शारीर-मानसर्दुःखैः संसारिणः सत्त्वा एभिरिति क्लेशाः। (बृटी पृ २१७) जिनसे प्राणी क्लेश/दुःख पाते हैं, वे क्लेश/कर्म हैं। ४१८. कोब (क्लीब) क्लिद्यते इति क्लीवः । (निचू ३ पृ २४६) जो शीघ्र पिघल जाता है, वह क्लीव/नपुंसक है। ४१९. कुंजर (कुञ्जर) कु-भूमि तं जरेती कुंजरम् ।। (उचू पृ १९९) को जीर्यतीति कुञ्जरः। (जीटी प १२२) ___ जो कु/पृथ्वी को जीर्ण कर देता है, वह कुंजर/हाथी है। १. 'क्लीब' का अन्य निरुक्तक्लीबते क्लीबः । (अचि पृ १२७) जो दुर्बल मन वाला होता है, वह क्लीब है। २. 'कुंजर' के अन्य निरुक्तकुजति कुञ्जरः-जो चिंघाड़ता है, वह कुंजर है । कुजौ हन् दन्तौ वा अस्य स्त इति कुञ्जरः। (अचि पृ २७३) जिसके कुञ्ज दो लंबे दांत/गजदंत होते हैं, वह कुंजर है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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