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________________ ८२ निरुक्त कोश ४२४. कुक्कुय (कुकूज) कुत्सितं कूजति–पीडितः सन्नाक्रन्दति कुकूजः । (उशाटी प ४८६) जो आक्रन्दन करता है, वह कुकूज है । ४२५. कुड (कुट) कुटनाद् कुटः, कौटिल्ययोगात् कुट इति । (अनुद्वामटी १२५) जो टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, वह कुट/घड़ा है । जो विभिन्न आकारों में मोड़ा जाता है, वह कुट/घड़ा है। ४२६. कुत्थियचारि (कुत्सितचारिन्) कुत्थियं चरतीति कुत्थियचारी। (आचू पृ ३१४) जो कुत्सित आचरण करता है, वह कुत्सितचारी है । ४२७. कुप्पह (कुपथ) कुत्सिताः पथाः कुपथाः। (उशाटी प ५०८) जो दूषित पथ है, वह कुपथ है। ४२८. कुमार (कुमार) काम्यतिऽसौ काम्यति वा क्रीडत इति कुमारः। (उचू पृ २०७) जिसे सब चाहते हैं, वह कुमार है । जो क्रीडा करता है, वह कुमार है। १. 'कुट' का अन्य निरुक्त कुटति कुटः। (अचि पृ २२६) जो तप्त किया जाता है, वह कुट/घट है। (कुटिण्-प्रतापने, कुटत्-कौटिल्ये) २. 'कुमार' के अन्य निरुक्त कामयते यदपि तदपि दृष्टं इति कुमारः। कुमारयति क्रीडयति वा कुत्सितो मारोऽस्येति वा । (अचि पृ ७६) जो कुछ देखता है, उसे चाहता है, वह कुमार है। जो क्रीड़ा करता है, वह कुमार है। जिसकी मार/वासना कुत्सित है, वह कुमार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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