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________________ निरक्त कोश ३७६. कत्ता (कर्ता) जो करेइ सो कत्ता। (निचू १ पृ ३६) करोतीति कर्ता। (सूचू १ पृ. २७) जो प्रवृत्ति करता है, वह कर्ता है। ३८०. कप्प (कल्प) मूलोत्तरगुणान् कल्पयति-वर्णयति कल्पः। (बृचू प २) जो मूलगुण-उत्तरगुणों का कल्पन/वर्णन करता है, वह कल्प/ बृहत्कल्प है। कल्पयति-जनयत्याचार्यकमिति कल्पः। (बृटी पृ ४) जो शिष्य को आचार में निपुण बनाता है, वह कल्प/ आचारशास्त्र है। कल्पते समर्था भवंति संयमाध्वनि प्रवर्तमाना अनेनेति कल्पः।। (व्यभा १ टी प ६). संयममार्ग में चलने वाले जिसके द्वारा कल्प/समर्थ होते हैं, वह कल्प/आचार है। १ ३८१. कप्पणी (कल्पनी) कल्प्यते-छिद्यते यया सा कल्पनी। (आटी प ६०) जिसके द्वारा काटा जाता है, वह कल्पनी/कैची है। .. ३८२. कप्पोवग (कल्पोपग) कल्प्यन्ते-इन्द्रसामानिकत्रास्त्रिशादिदशप्रकारत्वेन देवा एतेष्विति कल्पा:- देवलोकास्तानुपगच्छन्ति-उत्पत्तिविषयतया प्राप्नुवन्तीति कल्पोपगाः। (उशाटी प ७०२) जहां इन्द्र, सामानिक आदि के रूप में देव कल्पित/ व्यवस्थित हैं, वे कल्प/देवलोक हैं। वहां उत्पन्न होने वाले देव कल्पोपग कहलाते हैं। सामत्थे वण्णणाए य, छेदणे करणे तहा । ओवम्मे अहिवासे य, कप्पसद्दो तु वण्णितो (जीतभा २५६०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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