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________________ निरुक्त कोश ७१ ( ब्राह्मण) जिसका अनुष्ठान करते हैं, वह ऋतु/यज्ञ हैं ।" ( स्वर्गकामी) जिसका अनुष्ठान करते हैं, वह ऋतु / यज्ञ है । " ३७५. कच्छु (कच्छ) कंडू इतस्स अंते डज्जति विसप्पतीति वा कच्छू । जो खुजलाने के बाद जलन पैदा करती है वह कच्छू / खुजली है | ३७६. कट्ठ (काष्ठ) कश्यतीति काष्ठम् । कत्थतीति काष्ठम् । जो जलने पर प्रकाश देता है, वह काष्ठ है । जो चीरा जाता है, वह काष्ठ है । ३७७. कणंगर (कनङ्गर) ३७८. कण्णसर (कर्ण शर) जो जलते समय शब्द करता है, वह काष्ठ है । काय - पानीयाय नङ्गराः - बोधिस्थ ( वोहित्थ ) -- निश्चलीकरण - पाषाणास्ते कनङ्गराः । ( विपाटी प ७१ ) जल में स्थित जलपोत को स्थिर करने वाला पाषाण कनङ्गर / लंगर है | १. क्रियते द्विजातिभिः क्रतुः । (निरुक्तम् १ पृ १३६ ) २. क्रियते स्वर्गकामैः ऋतु: । (अचि पृ १८२ ) ३. 'कच्छ' का अन्य निरुक्त ( आचू पृ ३९ ) और फैलती है, कषति त्वचं कच्छू: । (अचि पृ १०६ ) ( उच्च् पृ २०९ ) कण्णं सरंति पार्वति कण्णसरा । जधा सरीरस्स दुस्सहमायुधं सरो तहा ते कण्णस्स, एवं कष्णसरा ते । ( अचू पृ २२१ ) जो कानों में सरण / प्रवेश करते हैं, वे कर्णसर / शब्द हैं । जो कानों ने शर / बाण की तरह चुभते हैं, वे कर्णशर / शब्दबाण हैं । - Jain Education International ४. काश् - - दीप्तौ । कष् - हिंसायाम् । ( उचू पृ २११ ) जो त्वचा को उत्पीड़ित करती है, वह कच्छू / खुजली है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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