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________________ निरुक्त कोश ३८३ कम्म (कर्मन् ) free इति कम । बन्ध है | ( उच्च पृ १५५ ) जो ( मिथ्यात्व आदि हेतुओं से ) किया जाता है, वह कर्म / ३८४. कम्मकर (कर्मकर) कर्म करोति इति कर्म्मकरा । ३८५. कम्मावह (कर्मावह) जो कर्म / कार्य करते हैं, वे कर्मकर / नौकर हैं । कम्मं आवहतीति कम्मावह । ३८६. कयंत ( कृतान्त) ( आचू पृ ११० ) जो कर्म का आवहन करता है, वह कर्मावह / हिंसा है । कृतं - निष्पादितं बह्नपि कार्यमन्तं नयतीति कृतान्तः । ( बृटी पृ ५७७ ) जो सभी कार्यों का अन्त कर देता है, वह कृतान्त / कृतघ्न है । ३८७. कयकिच्च ( कृतकृत्य ) कृतानि - समापितानि कृत्यानि येन स कृतकृत्यः । ३८८. करण (करण) ७३ ( सू २३८५ ) ( बृटी पृ ५२६ ) जिसने कृत्य / कार्य समाप्त कर दिए हैं, वह कृतकृत्य है । क्रियते तेन करणम् । Jain Education International है । ३८६. करण (करण) ( आमटी प ५५८ ) जिसके द्वारा कार्य निष्पन्न किया जाता है, वह करण / साधन क्रियत इति करणम् । ( सूटी २ प ४१ ) (मूल गुणों की पुष्टि के लिए) जो किया जाता है, वह करण / उत्तरगुण है । १. क्रियन्ते मिथ्यात्वादिहेतुभिर्जीवेनेति कर्माणि । ( उशाटी प ६४१ ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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