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________________ निरक्त कोश ३६६. ओवीलय (अपव्रीडक) अपवीडयति- लज्जां मोचयतीत्यपवीडकः । (व्यभा ३ टी प १८) जो लज्जा/संकोच को मिटाता है, वह अपव्रीडक है । ३७०. ओसन्न (अवसन्न) अवसीदति-प्रमाद्यति यः सोऽवसन्नः। (प्रसाटी प २५) जो अवसाद/प्रमाद करता है, वह अवसन्न/प्रमादी है। ३७१. ओसप्पिणी (अवप्पिणी) अवसर्पति होयमानारकतया अवसर्पयति वाऽऽयुष्कशरीरादिभावान् हापयतीत्यवसप्पिणी। (स्थाटी प २५) जो ह्रास की ओर बढ़ती है, वह अवसर्पिणी है । जिसमें आयुष्य, शरीर आदि का अवसर्पण ह्रास होता है, वह अवसर्पिणी (कालचक्र) है। ३७२. ओहंतर (ओघन्तर) ओहं जो तरति तरिस्सति वा सो ओहंतरो। (आचू पृ १८०) जो ओघ/प्रवाह का पार पा जाता है, वह ओघंतर है । ३७३. ओहि (अवधि) तेणावहीयए तम्मिवाऽवहाणं तओऽवही सो य मज्जाया। जं तीए दव्वाइ परोप्परं मुणइ तओऽवहि ति ॥ (विभा ८२) अव–अधो विस्तृतं वस्तु धीयते--परिच्छिद्यतेऽनेनेत्यवधिः । जिससे उत्तरोत्तर विस्तार से जाना जाता है, वह अवधि/ अवधिज्ञान है। अवधिः-मर्यादा रूपिष्वेव द्रव्येषु परिच्छेदकतया प्रवृत्तिरूपा तदुपलक्षितं ज्ञानमप्यवधिः। (प्रज्ञाटी प ५२७) जो अवधि/सीमाबद्ध ज्ञान है, वह अवधि (ज्ञान) है । ३७४. कउ (क्रतु) करोतीति ऋतुः। (सूचू २ पृ ३३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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