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________________ ( 88 ) बियजोगिणो ( द्वि योगी ) गोजी. २६१ . बियजोगिणो तदूणा संसारी एक जोगा दु॥२६१॥ टीका-तहीनत्रसपर्याप्तराशिः द्वियोगिराशिप्रमाणं भवति-कायवाग्योगयुक्त जीवराशिदित्यर्थः। पर्याप्त त्रस राशि प्रमाण में से त्रियोगी जीवों के परिमाण को कम कर देने से जो शेष रहे उतने द्वियोगी अर्थात् काययोग और वचन योग से युक्त जीवों का परिमाण होता है। तिजोगिणो ( त्रियोगी ) गोजी० गा २६१ . त्रियोगी अर्थात् मन-वचन-काय तीनों योगों से युक्त जीव की राशि । देवेहि सादिरेया तिजोगिणो तेहिहीण तसपुण्णा । बियजोगिणो तदूणा संसारी एक जोगा दु ।। टीका-त्रियोगिराशिर्भवति-कायवाङ् मनोयोगत्रययुक्तजीवराशिदित्यर्थः । देवराशि का प्रमाण साधिक ज्योतिष्क देवराशि प्रमाण है। उस देवराशि में धनांगुल के दूसरे वर्गमूल से गुणित जगत्श्रेणी प्रमाण नारकी और असंख्यात पण्णट्ठी तथा प्रतरांगुल से भाजित जगत प्रतर प्रमाण संज्ञी पर्याप्त तिर्यंच और बादर के धन प्रमाण पर्याप्त मनुष्य-इन सबको मिलाने से जो परिमाण होता है उतने त्रियोगी जीव होते हैं । कहा है कतिविहाणं भते ! जोगनिव्वत्ती पण्णता? गोयमा ! तिविहा जोगनिव्वत्ती पण्णत्ता, तंजहा-मणजोग-निव्वत्ती, वइजोगनिव्वत्ती, कायजोगनिव्वत्ती। एवं जाव वेमाणियाणं, जस्स जति विहो जोगो। -भग• श० १८ । उ ८ । सू ८९ तीन योगनिर्वृत्ति होती है-यथा मनोयोगनिर्वृत्ति, वचनयोगनिवृत्ति तथा काययोगनिर्वृत्ति । इसी प्रकार दण्डक के सभी जीवों के योगनिर्वृत्ति होती है। जिस दण्डक में जितने योग होते हैं उसमें उतने योगनिर्वृत्ति कहना। टीकाकारने निर्वृत्ति की व्याख्या इस प्रकार की है। तत्र क्रियतेऽनेनेति करणं-क्रियायाः साधकतमं कृतिर्वा करण-क्रिया मात्रं, नन्वस्मिन् व्याख्याने करणस्य निर्वृत्तश्च न भेदः स्यात्, निर्वृत्तरपि क्रियारूपत्वात्, नैवं, करणमारम्भक्रिया निर्वत्तिस्तु कार्यस्य निष्पत्तिरिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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