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________________ ( 87 ) स्वर नाम कर्म के उदय के वश से भाषा वर्गणा के रूप में आये हुए पुद्गल स्कन्धों को सत्य, असत्य, उभय-अनुभय भाषा के रूप में परिणमाने की शक्ति की पूर्णता को भाषा पर्याप्ति कहते हैं। भाषा वर्गणा के पुद्गल वचन योग में सहायक बनते हैं। मनो वर्गणा के रूप में आये हुए पुद्गल स्कन्धों को अंगोपांग नाम कर्म के उदय की सहायता से द्रव्य मनोरूप से परिणमाने के लिए तथा उस द्रव्य मन की सहायता से नो इन्द्रियावरण और वीर्यान्तराय के क्षयोपशम विशेष से गुण-दोष का विचार, स्मरण, प्रणिधान लक्षण वाले भाव मन रूप से परिणमन करने की शक्ति की पूर्णता को मनः पर्याप्ति कहते हैं। मनो वर्गणा के पुद्गल भाव मनोयोग में सहायक बनते हैं। सयोगी केवली गुणस्थान में मनः पर्याप्ति भी है अतः उपचार से भाव मनोयोग मानना ही पड़ेगा। जन्म, जरा, मरण, भय, अनिष्ट संयोग, इष्ट वियोग, दुःख, संज्ञा, रोग आदि नाना प्रकार की वेदना जिसमें नहीं है वह समस्त कर्मों के सर्वथा विनाश से प्रकट हुई सिद्धगति है। उस गति में योग नहीं होता है, लेश्या नहीं होती है। ___उत्सर्पिणी काल के तृतीय काल के अन्त में तथा विदेह आदि क्षेत्र में तथा अवसर्पिणी काल के चतुर्थ काल के आदि में आत्मांगुल भी प्रमामांगुल रूप होता है।' औपमिक सम्यक्त्वी को आहारक व आहारकमिश्र काययोग नहीं होता है । कार्मण काययोगी जीव परभव का आयुष्य नहीं बांधता है। सयोगी जीव तीसरे, बारहवें व तेरहवें गुणस्थान में मरण को प्राप्त नहीं होता है। अप्रमत्त गुणस्थान में वेदनीय कर्म की उदीरणा नहीं है। योग-जीव द्रव्य की पर्याय है। द्रव्यों की पर्याय की जघन्य स्थिति क्षण मात्र होती है। उसको समय कहते हैं। गमन कहते हुए दो परमाणुओं के परस्पर में अतिक्रम करने में जितना काल लगता है उतना ही समय का प्रमाण है। आकाश के जितने क्षेत्र को एक परमाणु रोकता है उसे प्रदेश कहते हैं। सिद्ध द्रव्य कर्म और भाव कर्म से रहित होने से सदा शुभ होते हैं। एक जोया ( एक योगी ) गोजी० गा० २६१ बियजोगिणो तद्रूणा संसारी एक जोगा दु ।। टीका-ताभ्यां द्वित्रियोगराशिभ्यां हीन संसारी। एक योगि राशिर्भवति-काययोयिजीवराशिदित्यर्थः । संसारी जीव राशि में से दो योग और तीन योग वाले जीवों का परिमाण हीन कर देने पर जो शेष रहे उतना एक योगी अर्थात् काययोगी जीवों की राशि होती है । १. गोजी० मा० ८९, १५९ । टीका । २. गोजी. गा०७२८ । टीका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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