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________________ ( 40 ) अस्तु कर्मवगंणा रूप पुदगलस्कंधों को ज्ञानावरण आदि कर्म रूप से और नोकर्मवर्गणा रूप पुद्गलस्कंधों को औदारिक आदि नोकर्म रूप से परिणमन में हेतु जो सामर्थ्य है तथा आत्मप्रदेशों के परिस्पन्द को योग कहते हैं । लोक में देखा जाता है कि- जैसे अग्नि के संयोग से लोहे में दहन शक्ति होती है उसी तरह अंगोपांग शरीर नाम कर्म के उदय से मनोवर्गणा तथा भाषा वर्गणा के आये पुद्गलस्कंधों और आहारवर्गणा के आये नोकर्म पुद्गलस्कंधों के सम्बन्ध से जीव के प्रदेशों में कर्म और नोकर्म को ग्रहण करने की शक्ति उत्पन्न होती है । घट में घट का विकल्प सत्य है । घट में पट का विकल्प असत्य है । सत्य और उभय अर्थात् सत्यासत्य है । कुण्डिका में जल धारण करने से किसी को बुलाने पर 'हे देवदत्त' यह विकल्प अनुभय है अर्थात् कहा जाता है । असत्य ज्ञान का विषय अथं घट का विकल्प उभय है। उसे न सत्य और न असत्य जो मन सद्भाव अर्थात् सत्य अर्थं । उसको विषय करने वाला मन सत्य मन है । अर्थात् सत्य अर्थ का ज्ञान उत्पन्न करने की शक्ति रूप भावमन - सत्यमन है । उस सत्य मन से उत्पन्न हुआ योग अर्थात् प्रयत्न विशेष सत्य मनोयोग है । उससे विपरीत अर्थात् असत्य अर्थ को विषय करने वाले ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति रूप भाव मन से उत्पन्न प्रयत्न विशेष मृषा अर्थात् असत्य मनोयोग है । उभय अर्थात् सत्य और असत्य अर्थ के ज्ञान से उत्पन्न करने की शक्ति रूप भाव मन से उत्पन्न प्रयत्न विशेष उभय मनोयोग है । सत्य और असत्य से युक्त नहीं होता है अर्थात् अनुभय रूप अर्थ के ज्ञान को उत्पन्न करने की शक्ति रूप भावमन असत्यमृषा मन है । उस भाव मनसे उत्पन्न जो योग अर्थात् प्रयत्न विशेष है वह असत्यमृषा मनोयोग अर्थात् अनुभय मनोयोग है । भावमन के बिना मनोयोग नहीं होता है । अतः केवली के कथंचिद् भाव मनोयोग है । तीर्थंकरके पांच योग व सामान्य केवली के सात योग का विधान है । सत्य अर्थ का बाचक वचन सत्य वचन है । वह जनपद आदि दस प्रकार के सत्य अर्थ को विषय करने वाले वचन व्यापार को उत्पन्न करने में समर्थ है । स्वर नाम कर्म के उदय से प्राप्त भाषा पर्याप्ति से उत्पन्न भाषा वर्गणा के आलम्बन से आत्मप्रदेशों में शक्ति रूप जो भाव वचन से उत्पन्न योग अर्थात् प्रयत्न विशेष है वह सत्यवचन योग है । उससे विपरीत असत्य है अर्थात् असत्य अर्थ को विषय करने वाला वचन व्यापार रूप प्रयत्न असत्य वचन योग है । कमण्डलु में घट व्यवहार की तरह सत्य और असत्य अर्थविषयक वचन ब्यापार रूप प्रयत्न उभय वचन योग है । जो सत्य और असत्य अर्थ को विषय नहीं करता वह असत्यमृषा अर्थ को विषय करने वाला वचन व्यापार रूप प्रयत्न विशेग अनुभय वचन योग है । उदाहरणतः अमनस् अर्थात् द्वीन्द्रिय से असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवों की जो अनक्षरात्मक भाषा है तथा संज्ञी पंचेन्द्रियों की जो आमन्त्रण आदि रूप अनक्षरात्मक भाषा वह सब अनुभय वचन योग कही जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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