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________________ ( 41 ) जनपद, सम्मति, स्थापना, नाम, रूप, प्रतीत्य, व्यवहार, संभावना, भाव, उपमा-इन दस स्थानों में दस प्रकार का सत्य जानना। अमितगति के सामने जीवकाण्ड वर्तमान था। अमितगति ने अपना पंचसंग्रह वि० सं० १०७० में पूर्ण किया था। इससे लगभग तीन दशक पहले गोम्मटसार की रचना हो चुकी थी और अमितगति ने अपने पंचसंग्रह की रचना में इसका उपयोग किया है। १-जनपद सत्य–भिन्न-भिन्न जनपदों में उस-उस जनपद के व्यवहारी पुरुषों के रूढ़ वचन को जनपद सत्य कहते हैं। जैसे भात को महाराष्ट्र देश में भातु-भेटु कहते है, आन्ध्रप्रदेश में वटक-मुकुडु कहते हैं, कर्णाट देश में कुलु और द्रविड़ देश में चोर कहते हैं । २-सम्मति सत्य-संवृत्ति अर्थात् कल्पना से या सम्मति अर्थात् बहुतजनों के स्वीकार करने से सर्वदेश साधारण जो नाम रूढ़ हैं वह संवृत्ति सत्य या सम्मति सत्य हैं । जैसे -पट्टरानीपना नहीं होने पर भी किसी को देवी कहना।। ३-स्थापना सत्य-अन्य में अन्य वस्तु का समारोप स्थापना है। उसका आश्रय करके मुख्य वस्तु की स्थापना सत्य है। जैसे- चंद्रप्रभ की प्रतिमा को चंद्रप्रभ कहना। ४-नाम सत्य-जैसे भातु इत्यादि नाम देश आदि की अपेक्षा सत्य है उसी तरह अन्य की अपेक्षा न करते हुए ही संव्यवहार के लिए किसी का नाम रखना नाम सत्य है । जैसे-किसी पुरुष का जिनदत्त नाम । जिन ने जिसे दिया वह जिनदत्त होता है। किन्तु इस दान क्रिया की अपेक्षा न करते हुए यह नाम प्रयुक्त होता है । ५-रूप सत्य-चक्षु के व्यापार की अधिकता से रूपादि के युक्त पुद्गल के गुणों में रूप की प्रधानता से तदाश्रितवचन रूप सत्य है। जैसे अमुक पुरुष श्वेत है। यहाँ मनुष्यों के केशों के नील आदि वर्ण के होने पर तथा रस आदि अन्य गुणों का सद्भाव होने पर भी उनकी विवक्षा नहीं है । ६-प्रतीत्य सत्य-प्रतीत्य अर्थात् आपेक्षिक सत्य है । जैसे किसी को दीर्घ कहना । यहां दूसरे के छोटेपन की अपेक्षा करके ही प्रकृत को दीर्घ कहा गया है। इसी तरह यह स्थूल है या सूक्ष्म है इत्यादि वचन भी प्रतीत्य सत्य है । ७-व्यवहार सत्य-नैगमादि नय की प्रधानता लेकर कहा गया वचन व्यवहार सत्य है। जैसे-नैगमनय की प्रधानता से 'भात पकता है' ऐसा कहना क्योंकि पक तो चावल रहे हैं, पकने पर भात होगा। नय व्यवहार के आश्रय से होने वाला वचन व्यवहार जैसे-स्यात् सब वस्तु सत् है स्यात् सब वस्तु असत् है, इत्यादि वाक्य व्यवहार सत्य है। 'भात पकता है' यहाँ भातपर्याय-भातपर्याय की पाक समाप्ति के अनन्तरकाल में होती है अतः पाक काल में यद्यपि नहीं है तथापि चावलों की भातरूप पर्याय की. निकटता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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