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________________ ( २९१ ) गोयमा ? तिणि निरयावाससयसहस्सा, एवं जहा पंकप्पभाए ॥ तमाए णं भंते ! पुढवीए केवतिया निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता० ? गोयमा ! एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पण्णत्ते। सेसं जहा पंकप्पभाए। अहेसत्तमाए गं भंते ! पुढवीए कति अणुसरा महतिमहालया महानिरया पण्णत्ता? गोयमा! पंच अणुत्तरा महतिमहालया महानिरया पण्णत्ता, तंजहाकाले, महाकाले, रोरुए, महारोरुए, अपइट्ठाणे। ते णं भंते ! कि संखेज्जवित्थडा ? असखेज्जवित्थडा। गोयमा ! संखेज्जवित्थडे य असंखेज्जवित्थडा य । अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालएसु महानिरएसु संखेज्जवित्थडसु नरए एगसमएणं केवतिया नेरइया उववज्जति ? एवं जहा पंकप्पभाए, नवरं-तिसु नाणेसु न उववज्जति, न उव्वट्ट ति, पण्णत्तएसु तहेव अत्थि। एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि, नवरं असंखेज्जा भाणियत्वा। -भग० श० १३ । उ १ । सू ७ से १३ २-शर्कराप्रभा पृथ्वी में पचीस लाख नरकावास कहे हैं। हे भगवान् ! नरकावास क्या संख्यातयोजन विस्तारवाले हैं या असंख्यातयोजन विस्तारवाले हैं। हे गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के विषय में कहा गया है उसी प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वी के विषय में भी कहना चाहिए। परन्तु उत्पाद, उद्वर्तना और सत्ताइन तीनों ही आवापकों में असंज्ञी नहीं कहना चाहिए। शेष सब कथन पूर्व की तरह कहना चाहिए। ३-बालुकाप्रभा पृथ्वी में पन्द्रह लाख नरकावास कहे गये हैं। शेष सभी कथन शर्कराप्रभा के समान कहना चाहिए। यहां लेश्या के विषय में विशेषता है। लेश्या का कथन प्रथम शतक के दूसरे उद्देशक के समान कहना चाहिए। ( कापोत-नील लेश्या )। ४-पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख नरकावास कहे हैं। जिस प्रकार शर्करा पृथ्वी के विषय में कहा है उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी नहीं उद्वर्तते। शेष सभी कथन पूर्व के समान कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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