SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३९ ) आहारकमिश्रकाययोगियों में आहारकशरीर की संघातनकृति युक्त जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे उसी की संख्यातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीर की परिशातन कृति तथा तैजस व कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति, इन तीनों पदों से युक्त जीव सदृश विशेष अधिक है । कार्मणकाययोगियों में औदारिकशरीर की परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक है। उनसे तैजस और कार्मणशरीर की संघातन-परिशातन कृति युक्त जीव अनतगुण हैं। '३५ सयोगी जीवों का लोक-क्षेत्र में अवस्थान .०१ पंच मनोयोगी तथा पंच वचनयोगी का अवस्थान जोणाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवली केवडि खेते लोगस्स अंसेखज्जविभागे। -षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू २९ । पु ४ । पृष्ठ• १०२ टीका-एदस्स सुत्तस्स अत्थो वुच्चदे-पंचमणजोगि-पंचवचिजोगिमिच्छादिद्विसत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउब्वियसमुग्घादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे। वेउन्वियसमुग्घादगदाणं कध मणजोग-वचिजोगाणं संभवो? ण, तेसि पि णिप्पण्णुत्तरसरीराणं मणजोग-वचिजोगाणं परावत्तिसंभवादो। मारणंतियसमुग्धादगदा तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, णर-तिरियलोहितो असंखेज्जगुणे। मारपंतियसमुग्घादगदाणं असंखेज्जजोयणायामेण ठिदाणं मुच्छिादाणं कधं मणवचिजोगसंभवो? ण, वारणाभावादो अवत्ताणं णिभरसुत्तजीवाणं व तेसिं तत्थ संभवं पडि विरोहाभावादो। मण-वचिजोगेसु उववादो पत्थि। सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव असमुग्घादसजोगिकेबलि त्ति मूलोघभंगो। णवरि सासणअसंजदसम्माइट्ठीणं उववादो पत्थि । ___ योगमार्गणा के अनुवाद से पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगियों में मिथ्यादृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगी-केवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीव लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं । अस्तु - स्वस्थान-स्वस्थान, विहारवत्स्व स्थान, वेदना समुद्घात, कषायसमुद्घात और वैक्रियिक समुद्घात पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीव सामान्य लोकादि तीनों लोकों के असंख्यातवें भाग में, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग में और अढाईद्वीप से असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy