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________________ ( १४० ) प्रश्न है कि वैक्रियिकसमुद्घात को प्राप्त जीवों के मनोयोग और वचनयोग कैसे संभव है । उत्तर - नहीं, क्योंकि, निष्पन्न हुआ है, विक्रियात्मक उत्तर शरीर जिनके, ऐसे जीवों के मनोयोग और वचनयोगों का परिवर्तन संभव है । मारणान्तिक समुद्घात गत पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी मिध्यादृष्टि जीव सामान्य लोक आदि तीनों लोकों के असंख्यातवें भाग में, मनुष्यलोक और तिर्यग्लोक के असंख्यातगुणे क्षेत्र में रहते हैं । प्रश्न है कि मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त, असंख्यातयोजन आयाम से स्थित और मुच्छित हुए संज्ञी जीवों के मनोयोग और वचनयोग कैसे संभव हैं । उत्तर— नहीं, क्योंकि बाधक कारण के अभाव होने से निर्भर ( भरपूर ) सोते हुए जीवों के समान अव्यक्त मनोयोग और वचनयोग मारणान्तिक समुद्घात गत मुच्छित अवस्था में भी संभव है, इसमें कोई विरोध नहीं है । • ०२ काययोगी का अवस्थान कायजोगीसु मिच्छाइट्ठी ओघं । - षट्० खण्ड० १ । ३ । सू ३० । पु ४ । पृष्ठ० १०३ टीका - सत्याणसत्थाण- वेदण-कसाय- मारणंतिय उववाद- गदा कायजोगिमिच्छाइट्ठी सव्वलोए । विहारवदिसत्थाण वेउव्वियसमुग्धादगदा तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे । एत्थ ओवट्टणा जाणिय कायव्वा । सासणसम्मादिद्विप्पहूडि जाव खोणकसायवीदरागछदुमत्था केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभागे । Jain Education International - षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ३१ । पु ४ । पृष्ठ० १०३ टीका - जोगाभावादो एत्थ अजोगीणमग्गहणं । सेसं सुगमं । सजोगिकेवली ओघं । - षट्० खण्ड ० १ । ३ । सू ३२ । पु ४ । पृष्ठ० १०४ टीका- गुणपडवण्णाणमेगजोगो किण्ण कदो ? ण, सजोगिम्हि लोगस्स असं खेज्जेसु भागेसु सव्वलोगे वा इदि विसेसुवलंभादो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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