SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दणकदी संखेज्जगुणा। ओरालियपरिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकवी तिण्णि वि सरिसा विसेसाहिया। कम्मइयकायजोगीसु सव्वत्थोवा ओरालियपरिसादणकदी। तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी अणंतगुणा। -षट० ४। १ सू ७१ । पु ९ । पृष्ठ० ४४२ । ४ पाँच मनोयोगी और तीन वचनयोगी जीवों में आहारक शरीर की परिशातन कृति युक्त जीव सबसे थोड़े हैं। उससे उसी की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। उनसे वैक्रियिक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। उनसे औदारिक शरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिक शरीर की संघातन परिशातनकृति उक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मण शरीर की संघातनपरिशातनकृति उक्त जीव विशेष अधिक हैं। ' वचनयोगी और असत्यमृषा वचनयोगी जीवों में आहारक शरीर की परिशातन कृति युक्त जीव सबसे थोड़े हैं। उनसे संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। उनसे वैक्रियिक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे है। उनसे औदारिक शरीर की संघातन परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे है। उनसे तैजस व कार्मण शरीर की संघातन परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है । काययोगी जीवों की प्ररुपणा ओघ के समान है। विशेष इतना है कि उनमें तैजस और कार्मण शरीर की परिशातनकृति नहीं होती है। औदारिक काययोगियों में आहारक शरीर की परिशातन कृति युक्त जीव सबसे स्तोक है। उनसे वैक्रियिक शरीर की संघातन कृति युक्त जीव असंख्यातगुण है। उनसे वैक्रियिक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे है। उनसे उसीकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। उनसे औदारिक शरीर की परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है । उनसे औदारिक शरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे उनसे तैजस और कार्मण शरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक है। औदारिकमिश्रकाययोगियों में अपवे पदों के अल्पबहुत्व की प्ररुपणा पंचेन्द्रिय अपर्याप्तों के समान है। वैक्रियिककाययोगियों में अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि उनमें तीनों पद सदृश है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों की प्ररुपणा नारकियों के समान है। आहारककाययोगियों में अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि उनमें चारों पद समान है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016029
Book TitleYoga kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia, Shreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy