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________________ 76. भावविरदो दु विरदो (मूलाचार 995), भावविमुत्तो मुतो (भावपा 43), समयसार 154, 306 307, स्वरूपोपलब्धि रूपवीतराग चरित्र रहितानां स्वर्गादिसुखनिम्मित्तभूतः पुण्यवन्तो भांति, न च मोक्षः (समयसार 288-89 पर तात्पर्यवृत्ति)। जेतः किं शुद्धिरात्मनः (उत्तर पु० 74-63)। 77. समयसार 6 7, शुद्धनिश्चयनयेन तु शुद्धात्मनो भिन्नत्वात् भेदो नास्ति (प्रवचनसार 1-77 पर तात्पर्यवृत्ति)। समाधि शतक 98, 78. ज्ञानिनां पुनः प्रखण्ड केवल ज्ञानस्वरूप एव (समयसार 15 पर तात्पर्यवृत्ति) अनादिनिधनानवरत स्वदमाननिखिल रसान्तर विविक्तात्यन्त मधुर चैतन्यकरसो यमात्मा, भिन्नरसाः कषायाः तैः सह यवेकत्वविकल्पकरण तद् अज्ञानात् (समयसार 97 पर प्रात्मख्याति)। उत्तरंग निस्तरंग त्वात्मान मनभवनात्मानेयेक मेवानुभवन प्रतिभाति, न पुनरन्यद् (समयसार 83 पर प्रात्मख्याति) । द्र० समयसार 215 पर तात्पर्यवृत्ति, तद्विज्ञानधनौंधर्मधुना किन्चिन्न किन्चिन्न किन्चित्सतु (समयसार कलश 277), एकं ज्ञानम्-नात्रद्वितीयोदयः (समयसार कलश 160)। 79. मायारो-1.5 (6) 123 125 (सब्बे सरा रिणयटति)। 80. समयसार 49, 142-43, नियमसार कलश 69 70, 9, (3/31) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014033
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1981
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchand Biltiwala
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1981
Total Pages280
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size20 MB
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