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________________ प्रचलन नहीं था । पाठान्तर चलता था । वेदों के रूप में उपलब्ध प्राचीन साहित्य का निर्माण बहुत बाद में हुआ और लिपिबद्ध करने का काम तो और भी में बहुत बाद हुआ । प्रारम्भ में गुरु अपने शिष्यों को ऋचाएं कंठस्थ कराते थे और उनका पठन होता था । इसलिये अन्य प्राचीन संस्कृतियों से भारतीय संस्कृति प्रर्वाचीन समझी जाती रही । प्राचीन इतिहास की खोज विदेशी विद्वानों ने जो साधन उपलब्ध हुये उस आधार पर की। प्राचीन भारतीय संस्कृति का प्रारम्भ श्रार्यों के आगमन के बाद माना जाता था लेकिन मोहन जोदड़ों, हड़प्पा तथा अन्य स्थानों की खुदाई के बाद माना जाने लगा है कि आर्यों के श्रागमन के पहले भारत में एक समुन्नत संस्कृति थी । वेद - पूर्व भारतीय संस्कृति के विषय में खोज होने लगी और विद्वान् मानने लगे कि वह वैदिक संस्कृति से भिन्न 'श्रमण' या 'प्रत्' संस्कृति होनी चाहिये । स्व० डा० रामधारीसिंह "दिनकर" ने ‘संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा है कि “यह मानना युक्तियुक्त है कि श्रमण संस्था भारत में आर्यों के ग्रागमन से पूर्व विद्यमान थी और ब्राह्मण इस संस्था को हेय समझते थे । यह ब्राह्मण-श्रमरण संघर्ष बौद्धों के पूर्व भी था। क्योंकि पाणिनी ने, जिनका समय ईसा के पूर्व सात सौ वर्ष माना जाता है, श्रमण-ब्राह्मण संघर्ष का उल्लेख “शाश्वतिकविरोध" के उदाहरण के रूप में किया है ।" आगे चलकर वे लिखते हैं- " पौराणिक हिन्दू धर्मं श्रागम और निगम दोनों पर आधारित माना जाता है। निगम है वैदिक प्रधान और ग्रागम श्रमण प्रधान है । आगम शब्द वैदिक काल से चली आती हुई वैदिकेतर धार्मिक परम्परा का वाचक है । जैनियों के प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ कहलाते हैं- 'आगम' | महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International बौद्ध धर्म की स्थापना भगवान् बुद्ध ने की है, जिनका काल आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व का है, अतः बौद्धों के पहले भारत में श्रमरण-संस्कृति थी और उसके जैन होने की संभावना ही अधिक है । भगवान् बुद्ध के पहले 250 वर्ष पूर्व तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ हुये थे । उनका व उससे भी अधिक प्राचीनकाल में जिनका उल्लेख मिलता है वे श्ररिष्टनेमि तथा ऋषभदेव जैनों के तीर्थङ्कर हो गये हैं । इसलिये अधिक सम्भव यही है कि प्रागैतिहासिक काल में यहां जो संस्कृति थी वह जैन संस्कृति से मिलतीजुलती या जैन संस्कृति ही थी । जैन अनुश्र तियों से भी संकेत मिलते हैं कि जैनधर्म प्राचीनकाल से चला आ रहा है। खुदाई में मिली वस्तुओं के अतिरिक्त मानववंश शास्त्र, भाषा, धार्मिक विचार, साहित्य और उपास्यदेव आदि साधनों का भी शोधकारों ने उपयोग किया, जिससे शोधक इस निर्णय पर पहुँचे है कि वैदिक-संस्कृति के पूर्व भारत में जो श्रार्येतर जातियां बसती थीं उनके धार्मिक रीति-रिवाज और विचार सुसंस्कृत थे और उनका रहन-सहन और आचरण सभ्यतापूर्ण था । श्रार्येतरों की सभ्यता नागरिकों की थी। उनके मकान हर प्रकार की सुख-सुविधाओं से युक्त थे । गृह-निर्माण तथा स्था पत्य कला में उनकी काफी प्रगति थी।" यह देखना होगा कि वैदिक व ब्राह्मण संस्कृति में किन-किन बातों में अन्तर था । वेदों में जिस यज्ञप्रधान संस्कृति के दर्शन होते हैं उसमें वेद तथा ब्रह्म को श्रेष्ठ घोषित किया गया है और ब्रह्म की प्राप्ति के लिये यज्ञ - कर्म को परम पुरुषार्थ माना है । यज्ञप्रधान संस्कृति का वेद-काल तथा उसके पूर्व भी विरोध दिखाई देता है । व्रात्य और साध्य प्रार्हत् संस्कृति के उपासक थे । वे मानते थे कि सृष्टि प्राकृतिक नियमों से बंधी हुई है । उसका ईश्वर कर्त्ता नहीं है । प्रकृति के नियमों के ज्ञान से नये संसार की मनुष्य रचना कर सकता है। मनुष्य की शक्ति ही सभी शक्तियों में श्रेष्ठ है। श्री देवदत्त For Private & Personal Use Only 1-35 www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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