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________________ का परिणाम कैसे पा सकता है। संभव है परि- उन्होंने अपनी प्रात्मचेतना जगाने को कहा णाम आने में विलम्ब हो किन्तु आम के वृक्ष में तो था जिसका प्रारम्भ अपने से होता है । वे उपदेश आम ही लगेंगे दूसरा फल कैसे लगेगा । दूसरा फल को विशेष महत्व नहीं देते थे और उपदेश देना भी लगना असंभव ही तो है। हो तो उस उपदेश का उपयोग मानते थे जिसके जीवन में धर्म उतरा हो । जो व्यक्ति उसके लाभ से महावीर के समय में उनके धर्म को निर्ग्रन्थ लाभान्वित हो वह ही उपदेश दे। तभी तो 12 धर्म कहा जाता था जिसमें किसी प्रकार की ग्रन्थी साल साधना में उन्होंने लगाये और 12 साल के नहीं । मूर्छाओं, आसक्तियों, परिग्रहों से दूर, जिसमें बाद भी कहीं नहीं कहा कि मैं जो कहता हूं तुम्हें किसी प्रकार का आग्रह नहीं; इसलिये वह धर्म था, उसे मानना ही चाहिये। कोई उनके उपदेश इसीलिये उसे कोई नाम नहीं दिया गया था। से प्रभावित होकर प्रवजित होना चाहता था तब भी वे यही कहते थे कि जैसा तुम्हें ठीक लगे वैसा करो। ____ सबके लिये मंगलकारी धर्म-उसका लक्षण जिसमें तुम्हें सुख मालूम हो वह करो । उनका काम महावीर ने बताया था-अहिंसा यानी प्राणिमात्र तो मनुष्य को प्रात्मचेतना का भान कराना था। के प्रति समता। मन, वचन और शरीर से किसी वहां अाग्रह को कोई स्थान नहीं था । अनुभव लेने को भी कष्ट न पहुंचाना । सबको प्रात्मवत् मानकर की बात थी, कहने की कहीं। धर्म करणीय था व्यवहार करना जिसमें संयम आवश्यक हो जाता निसानी है। संयम के लिये सहना भी होता है। यही तो उनका धर्म था । यह धर्म किसी व्यक्ति या वर्गविशेष इसलिये उनका धर्म व्यापक था । वे कभी नहीं के लिये नहीं था । सबके लिये था और सबका था। कहते थे कि तुम मेरी शरण में प्रानो मैं तुम्हारा उससे स्त्री का भी उद्धार हो सकता था, पुरुष का उद्धार कर दूंगा। बल्कि जैन धर्म की व्यापकता भी। गृहस्थी भी उसे अपनाकर तिर सकता था यहां तक थी कि उसमें याज्ञवल्क्य, असित्, देवल, और गृहत्यागी भी, धनवान भी और निर्धन भी, आंगिरस तथा बौद्ध या आजीविक सम्प्रदाय वाले ब्राह्मण भी और चाण्डाल भी, नगरवासी भी और भी अर्हत् पद को प्राप्त हुये थे। . वनवासी भी। शर्त इतनी ही थी कि समता प्रा जाय । सम्पूर्ण समता आने पर उद्धार में कोई जैन या भगवान् महावीर की परम्परा प्राचीन बाधा आ नहीं सकती। कोई बाधक बन नहीं काल से चली आ रही है ऐसी जैनियों की मान्यता सकता। उनके साहित्य, पुराण या शास्त्रों के आधार पर थी इस बात को अब इतिहासज्ञ भी स्वीकार करने महावीर की भक्ति की विशेषता यह रही है लगे हैं। यह मान्यता कि जैन धर्म बौद्ध या हिन्दू कि वे भक्त को भगवान् बना देते हैं । मानव के धर्म की शाखा है, कई ऐतिहासिक खोजों के भीतर की आत्मज्योति जगाकर उसे अपना पथ कारण बदल गई है। प्रशस्त करने को कहते हैं । उन्होंने कहा-सुख बाहर कहां ढूढते हो । सुख का भण्डार तो तुम्हारे पास भारत की प्राचीन संस्कृति अत्यन्त गौरवपूर्ण मौजूद है । जरूरत है सही दृष्टि की, सही निष्ठा व उन्नत होते हुये भी उसका ठीक परिचय पाने में की और सदाचार की, जिसका करना तुम्हारे हाथ कई कठिनाईयां हैं। भारत में व्यवस्थित इतिहास लिखने की प्रथा नहीं थी। प्रारम्भ में तो लेखन का 1-34 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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