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________________ उन्होंने अनुभव किया कि जब तक व्यक्ति 2. अभ्यास करने के लिए शरीर को ही 'स्वयं' या आत्मा मानता रहेगा उस 3. लोक में सुख-शान्ति हेतु आचरण के लिए। समय तक शरीर के लिए भोगोपभोग जुटाने की होड़ा-होड़ी चलती रहेगी। ऐसे संघर्ष में वास्तविक लोक में प्राणिमात्र के कल्याण हेतु व्यक्ति को सुख-शान्ति दुर्लभ है । अतएव उन्होंने निवृत्ति- इसी क्रम से अग्रसर होने की आवश्यकता है । परायण वैराग्य मार्ग का उपदेश देते हुए सांसारिक मनन एवम् चितन के द्वारा इस शरीर तथा संसार सुख-दुखों को क्षणिक तथा अवास्तविक बताया की नश्वरता के विचार पुष्ट होते हैं तथा व्यक्ति तथा शाश्वत सुख-शान्ति हेतु व्यक्ति को सहिष्णुता की दृष्टि शरीर से हटकर आत्मिक सुख-शान्ति तथा आत्म-बुद्धि का संदेश दिया। उन्होंने सम्पत्ति की अोर केन्द्रित होती है। अभ्यास के द्वारा तथा भोगोपभोग के साधनों को जुटाने की होड़ सांसारिक प्रतिकूलताओं में भी दुःखानुभूति न होने के स्थान पर त्याग की होड़ का उपदेश दिया। की शक्ति बढ़ती है। इन दो प्रकार की बातों का जब व्यक्ति यह कहने तथा अनुभव करने लगेगा उपदेश जैन धर्म की प्रमुख विशेषताओं में है। कि अन्य अमुक व्यक्ति से कहीं कम परिग्रह होते लोक-व्यवहार में सुख-शांति हेतु आचरण के लिए हुए भी मैं कहीं अधिक सुखी हूं तभी संसार में अन्य धर्मों में भी उपदेश हैं परन्तु महावीर के वास्तविक सुख-शान्ति की प्रतिष्ठापना होगी। उपदेशों में उन्हें पूर्णता तथा चरम सीमा प्रदान लगभग 12 वर्ष की कठोर तपस्या के उपरान्त की गई है। आचरण हेतु नियमों को दो भागों भगवान महावीर को वैशाख सुदी 10 के दिन में बांटा गया है :-- ऋजुकूला नदी के तट पर केवलज्ञान प्राप्त हुआ। 1. अणुव्रत-अर्थात् अश रूप में व्रतों के केवलज्ञान प्राप्ति के 65 दिन पश्चात् सावन । पालन का उपदेश गृहस्थों के लिए है । गृहस्थों या बदी 1 के उषा काल में राजगृह के विपुलाचल श्रावकों की पात्मिक उन्नति तथा नियम व्रतादि पर्वत पर प्राणिमात्र के लिए प्रथम उपदेश दिया। की क्रम से 11 श्रेणियां निर्धारित की गई हैं जिन्हें उपरान्त 30 वर्ष तक भगवान् महावीर ने पैदल 11 प्रतिमाएँ कहते हैं । ही सारे भारत में विहार करके लोक-कल्याण के लिए अपने अनमोल उपदेश दिए। अन्त में लगभग 2. महावत-साधुत्रों तथा गृहत्यागी मुनियों 72 वर्ष की प्रायू में पावापुरी (बिहार) में ई० के लिए व्रतों का सर्वांग में चरम सीमा तक पालन पू० 527 में भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्त करना आवश्यक है। प्रात्मा की निर्मलता तथा किया ! कार्तिक कृष्ण अमावस्या की वह तिथि नगदेषादि मनोविकारों के परिहार की दृष्टि से जिस दिन महावीर सदा सर्वदा के लिए, लोक 14 स्थानों का वर्णन है। कल्याण का मार्ग दिखाकर सांसारिक आवागमन से मुक्त हो गये दीपावली के रूप में चिरस्मरणीय एक अहिंसा अगुव्रती श्रावक अपने विरोधी हो गई। का विरोध कर सकता है । यद्यपि वह संकल्पी भगवान् महावीर के उपदेशों को हम तीन हिंसा नहीं करेगा तथा प्रारम्भी (व्यापारादि में) हिंसा से बचेगा परन्तु एक महानती मुनि अपने प्रमुख श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं :---- पीड़क के प्रति मन में भी बुरी भावना नहीं ला 1. मनन तथा चिंतन करने के लिए सकता। महावीर जयन्ती स्मारिका 76 1-5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
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