SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होते थे। ऐसे विकट समय में लिच्छवि गणतन्त्र गया । उनके ये सब नाम उनके गुणों के की राजधानी वैशाली के क्षत्रिय कुण्ड ग्राम या सूचक हैं। कुण्डलपुर (विहार) के नाथवंशी राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला, जो इतिहास प्रसिद्ध वैशाली के बालक वर्द्धमान बचपन से ही अत्यन्त रूपवान, राजपरिवार से सम्बन्धित थी, की कुक्षि में जैन धीर, गम्भीर तथा चितनप्रिय थे। उनके बचपन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर का की अनेक वीरत्वपूर्ण घटनाओं का शास्त्रों में अवतरण आसाढ़ सुदी ६, ई० पू० ६०० में हुआ। उल्लेख मिलता है । खेलते में एक बार अचानक उनके गर्भावतरण के समय माता त्रिशला को एक विषधर सर्प को देखकर अन्य बालक डर कर ऐरावत हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, दो पुष्पमालाएँ, भाग गए, पर महावीर तनिक भी नहीं डरे । एक पूर्णचन्द्र, उदीयमान सूर्य, स्वर्णकलश, सरोवर, दो बार संजय और विजय नामक दो मुनियों को मछली, लहराता समुद्र, स्वणिम सिंहासन, देव किसी विषय में संदेह हुआ जो महावीर को देखते विमान, नाग भवन, रत्नराशि, धूम्रविहीन अग्नि ही दूर हो गया, तब उन्होंने वीर को 'सन्मति' आदि सोलह स्वप्न हुए। नाम दिया। इस प्रकार जो भी उनके सम्पर्क में आता उनसे अवश्य प्रभावित होता । तत्पश्चात् माता त्रिशला ने एक हाथी को मुख में प्रवेश करते देखा । प्रातः राजा सिद्धार्थ यद्यपि उनके चारों ओर वैभव एवं भोगोपभोग ने, जो स्वप्न विज्ञान के ज्ञाता थे, सब स्वप्नों का ___ की मामग्रियों का बाहुल्य था परन्तु उनकी मनोवृत्ति फल अलग-अलग स्पष्ट करते हुए बताया कि हाथी - प्रारम्भ ही से बैगग्य की ओर थी। उन्हें जग के के मुख प्रवेश के अनुसार त्रैलोक्य के नाथ, दुखियों । के उद्धारक महान् तीर्थंकर का जीव उनके गर्भ भोग निस्सार प्रतीत होते थे । यह संसार क्या है ? में आ गया है। इन अवसरों पर नगर में रत्नों मनुष्य दुखी क्यों है ? मानव जीवन का उद्देश्य की वर्षा आदि हुई जिसका बड़ा ही मनोहारी क्या है ? शाश्वत सुख किस प्रकार प्राप्त किया वर्णन जैनागम में मिलता है । इस गर्भावतरण की __ जा सकता है ? आदि प्रश्न उनके मस्तिष्क में उठा घटना को भगवान के गर्भ कल्याणक के नाम से करते थे। भगवान् महावीर के करुणा हृदय में अभिहित किया जाता है। मानव ही नहीं जीव-मात्र की पीड़ा की सहानुभूति थी। यद्यपि संसार ने उनके सामने साधारण गर्भ काल व्यतीत होने पर यथा समय मिती गृहस्थों के समान जीवन व्यतीत करने के प्रलोभन चैत्र शुक्ला त्रयोदशी ई० पू० 599 को भगवान् रखे परन्तु वे उनमें न फँसे तथा लगभग 30 वर्ष महावीर का जन्म हुआ। इन्द्रादि देवों ने सुमेरु की अवस्था में मंगसिर कृष्ण पक्ष, दसमी सन् पर्वत पर ले जाकर उनका जन्माभिषेक महोत्सव 569 ई० पू० के दिन उन्होंने पंचमुष्ठी केशलोंच मनाया । उस समय राजा सिद्धार्थ के वैभव, कर जिन दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने गहन चिंतन महिमा, मान-प्रतिष्ठा आदि में अत्यन्त वृद्धि होने के द्वारा संसार के दुःखों के कारणों की खोज की। के कारण शिशु का नाम वर्द्धमान रखा गया। दीर्घ तपस्या के असीम परिषहों को सहने के तदुपरान्त उनके जीवन में घटित कतिपय घटनाओं उपरान्त जब वे पूर्ण रूप से सन्तुष्ट हो गए तब के कारण समय-समय पर उन्हें सन्मति, वीर, उन्होंने दुखों को दूर करने के उपायों का उपदेश अतिवीर तथा महावीर आदि नामों से पुकारा दिया। 1-4 महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014032
Book TitleMahavira Jayanti Smarika 1976
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Polyaka
PublisherRajasthan Jain Sabha Jaipur
Publication Year1976
Total Pages392
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy