SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काश्मीर के अद्वैत शैवतन्त्रों में सामाजिक समता २७१ या अमर्त ऐक्य न होकर सधन ऐक्य है। होगेल की भाँति वह केवल विरोधियों की एकता मात्र नहीं है अपितु क्रोचे की भाँति वह भिन्नों की एकता भी है ।' अतः सत् अनिवार्य रूप से भेद में अभेद है। सत् की पूर्णता का अभ्युपगम उसके अन्तनिहित स्वातन्त्र्य या सद्यः स्फूति के प्रत्यय के बिना सम्भव नहीं है । अतः सारी कारणात्मक व्याख्याएँ एक तरह से अधकचरी और अधूरी रह जाती हैं। होगेल में घटनाएँ या पदार्थ 'परतत्त्व' से 'निगमित होते हैं यहाँ पर 'आभासित' या अभिव्यक्त ।। __ तंत्रों की इस विचारधारा को यदि उसके ऐतिहासिक अनुवदन की दष्टि से देखा जाए तो कहना पड़ेगा कि तंत्रों के प्रभाव से एक मानवतावादी आंदोलन का सूत्रपात अनजाने में ही काश्मीर की घाटी में होने लगा था । तंत्र प्रतिपादित भक्ति की जो अन्तर्धारा घाटी में बही वह चौदहवीं शताब्दी में जाकर लल्लदे के वाक्यों में अपने प्रकर्ष को प्राप्त हुई यथा शिलेकैव स्वजातिभेदात् पीठादिनानाविधरूपभागिनी। तथैव योऽनन्ततया बिभाति कष्टेन लभ्यं शृणु तं गुरोः शिवम् ॥ ५२॥ नीला कैम कुक ने अपनी पुस्तक Thy way of swan में मध्य एशिया में इरफान के कवि-दार्शनिकों और काश्मीर के शैव लेखकों के मध्य एक घनिष्ट सामानन्तर्य के दर्शन किए हैं । इरफान और काश्मीर के ये दोनों आन्दोलन चौदहवीं शती में शाह-इ-हमदान से लल्ला की भेंट के साथ ही एक दूसरे के सम्पर्क में आते हैं, जिसका परिणाम होता है शिवाद्वयवाद एवं सूफीमत की इरफान परम्परा का परस्पर मिश्रण । सांस्कृतिक आश्लेषण की यह प्रक्रिया, जो कि भक्ति आन्दोलन से प्रेरित और उद्भूत थी, बादशाह जैन-उल-आबिदीन के हाथों परवान चढ़ी। सहिष्णुता, उदारता और सर्वधर्मसमभाव से यह बादशाह प्रतिश्रुत और प्रतिबद्ध था । यह पहला बादशाह था जिसने काश्मीर में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाया था और संस्कृत के पठन-पाठन को प्रोत्साहित किया था। कुक का कहना है कि यदि कहीं अकबर ने जैन-उल-आविदीन के आदर्श का पालन किया होता तो एक धर्मनिरपेक्ष भारत का अभ्युदय उसी क्षण वहीं हो जाता। धार्मिक समता और सहिष्णुता की इस परम्परा को शेख नूरुद्दीन ने, जो एक हिन्दू सन्त थे और बाद में मुसलमान हो गए थे, ने आगे बढ़ाया। १. देखिए लेखक का 'Contribution of Kashmir to Philosophy, Thought and cultuire' शीर्षक लेख, एवल्फ ऑफ भंडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, भाग ५६, १९७५, पृ० ३२-३३ । २. देखिए, Kashinir Bi-annual, Ed. P. N Pushp, P. 90. ३. देखिए, Doctrine of Recognition, R. K. Kano, Srinagar, P. 366. परिसंवाद-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.014013
Book TitleBharatiya Chintan ki Parampara me Navin Sambhavanae Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyamdhar Dvivedi
PublisherSampurnanand Sanskrut Vishvavidyalaya Varanasi
Publication Year1981
Total Pages386
LanguageHindi, English
ClassificationSeminar & Articles
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy