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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मंदिर कहलाते हैं तथा नायर (नाग) जाति की प्रधानता आदि से सहज ही अनुमानित किया जा सकता है। महावीर स्वामी के संबंध में अब यह मान लिया गया है कि कर्नाटक के राजा जीवंधर ने उनसे दीक्षा ग्रहण थी। उसका प्रभाव केरल तक अनुमानित किया जा सकता है। ये सब पौराणिक साक्ष्य एकदम मिथ्या नहीं कह जा सकते। यदि ये सब कल्पित हैं तो अनेक देवताओं संबंधी विवरण भी असत्य माने जायेंगे । उनके संबंध में भी पक्का पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हुआ है। ऋग्वेद में आर्यों और पणियों के संघर्ष का स्पष्ट संकेत है। ये लोग वेदों को नहीं मानते थे और कुछ विद्वान यह मानते हैं कि पणि जाति उत्तर भारत से खिसकते खिसकते केरल पहुंची और वहां बस गई। उसने अरब देशों, रोम आदि से व्यापार किया। केरल का इतिहास उसके विदेशों से व्यापारिक संबंधों से प्रारंभ होता है किंतु ये व्यापारी किस जाति के थे इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। किंतु इतिहास तो अपनी कुछ न कुछ निशानी छोड़ता ही है। केरल की आदिवासी जातियां जैसे पणियान, कणियान, पाणन तथा पणिककर आदि एवं पन्नियंकरा, पन्नियूर जैसे स्थान नाम और कुछ अन्य जातियों में जैनत्व के चिन्ह पणि या जैन धर्मावलंबियों के प्राधान्य को सूचित करते हैं । इसका विश्लेषण प्रस्तुत लेखक ने अभी अप्रकाशित पुस्तक केरल में जैनमतंम के एक स्वतंत्र अध्याय में किया है। इस पृष्ठभूमि का उद्देश्य यह है कि केरल में महापाषाणयुगीन (Megalithic) जो अवशेष पाये जाते हैं। उनका संबंध जैनधर्म से जोड़ना अनुचित नहीं जान पड़ता । एक अन्य कारण यह भी है कि जिन अजैन विद्वानों ने केरल में जैनधर्म संबंधी कार्य किया है, उन्हें जैन आख्यानों, प्रतीकों आदि की समुचित जानकारी उपलब्ध नहीं थी, ऐसा लगता है । शायद यही कारण है कि कुछ जैन अवशेषों आदि को बौद्ध समझ लिया गया है। जो भी हो, जैन अवशेषों आदि की खोज के लिए हम गोपीनाथ राव, कुंजन पिल्ले आदि विद्वानों के बहुत ऋणी हैं। जिन अनुसंधानकर्ताओं ने केरल में जैन अवशेषों की चर्चा की भी है, उन्होंने उन मंदिरों, मस्जिदों आदि की या तो समुचित समीक्षा नहीं की है या उन्हें बिल्कुल ही छोड़ दिया है जो किसी समय जैन थे । यह तथ्य मस्जिदों के संबंध में विशेष रूप से सही है। आखिर वे भी तो जैन स्थापत्य के नमूने हैं। ऐसी दस मस्जिदें इतिहासकारों ने खोज निकाली हैं। यह भी एक सत्य है कि जैन पुरावशेषों का योजनापूर्वक वैज्ञानिक एवं विस्तृत अध्ययन ही नहीं हुआ है। शताधिक गुफायें ऐसी हैं जो अनुसंधान की अपेक्षा रखती हैं। कुछ गुहा मंदिर और मुनिमड़ा या कुडक्कल अब भी उपेक्षित हैं। किसी जैन विद्वान का भी ध्यान इस ओर नहीं गया। इसी लेख में दिये हुए कुछ उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जायेगा । की भूमि पर्वतीय क्षेत्रों, मध्यभूमि और समुद्रतटीय भागों में बंटी हुई है। परिणाम यह है कि घने जंगलों से आवृत कुछ अधिक ही ऊँचे पहाड़ों पर स्थित गुफाओं, शैल मंदिरों आदि का अध्ययन कठिन भी हैं। ऐसे जिन कुछ अवशेषों का अध्ययन हुआ है वे जैनधर्म से संबंधित पाये गये हैं । तमिलनाडु की ही भांति केरल में भी धार्मिक उथल पुथल हुई। उसके कारण भी जैन स्मारकों को क्षति पहुंची। अनेक जैन मंदिर और पार्श्वनाथ की शासनदेवी पद्मावती के मंदिर शिव या विष्णु मंदिरों के Jain Education International 587 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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