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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ रूप में या भगवती मंदिरों के रूप में परिवर्तित कर दिये गये । अब उन्हें कुछ प्रतीकों से ही कठिनाई से पहिचाना जा सकता है। अनेक शिलालेख या तो नष्ट हो गये हैं या अभी उनका समुचित अध्ययन ही नहीं हुआ है। केरल में राजनीतिक आक्रमणों के कारण न केवल जैन मंदिरों को हानि पहुंची अपितु वैदिक धारा के मंदिर भी क्षतिग्रस्त हुए । इतिहासकारों का मत है कि सदियों से केरल के मंदिरों के लिए आदर्श कुणवायिलकोट्टम का प्रसिद्ध जैन मंदिर हैदरअली के द्वारा की गई विनाशलीला का शिकार बना और उसका जो कुछ अस्तित्व बचा था उसे उन डच लोगों ने नष्ट कर दिया । गोवा में भी अनेक जैन मंदिरों को क्षति पहुंचाकर नष्ट कर दिया था। टीपू सुल्तान ने भी जैन मंदिरों को हानि पहुंचाई। केरल में जैन मंदिरों की प्राचीनता आदि के संबंध में एक कठिनाई वहां के जैन धर्मावलंबियों के कारण भी उत्पन्न हो गई हैं। उन्होंने प्राचीन मंदिरों को गिराकर उनके स्थान पर सीमेंट कंक्रीट के नये मंदिर बना लिये हैं। अत: प्राचीनता के तार जोड़ना एक कठिन कार्य हो गया है। उपर्युक्त कठिनाईयों और कारणों के होते हुए भी महापाषाणयुगीन (कुडक्कल, शैल-आश्रय) अवशेषों से लेकर आधुनिक युग के विद्युत और प्रकाश मंडित जैन चैत्यालय (MIRROR TEMPLE) तक के जैन मंदिरों आदि का कुछ विवरण यहां देने का प्रयत्न किया जायेगा। जैन स्थापत्य के आद्य रूप की दृष्टि से यदि विचार किया जाये, तो यह तथ्य सामने आयेगा कि जैनों ने शायद मंदिरों से भी पहले चरणों (Footprints) का निर्माण किया। इस बात की साक्षी उन बीस तीर्थकरों के चरण चिन्हों से प्राप्त होती है जो कि बिहार के पारसनाथ हिल या सम्मेदशिखर पर उत्कीर्ण हैं । नेमिनाथ के चरण भी रैवतक या गिरनार पर्वत पर आज भी पूजे जाते हैं। केरल के अनेक मंदिरों तथा पर्वतों पर भी चरणों का आंकन पाया जाता है यद्यपि आज वे जैन नहीं रहे किंतु उनका संबंध जैनधर्म से सूचित होता है । इस प्रकार के मंदिर हैंकोडंगल्लूर का भगवती मंदिर, कोरंडी का शास्ता मंदिर, पालककाड का एक शिव मंदिर इत्यादि। तिरुनेल्ली पर्वत पर चरण जो कि अब राम के बताये जाते हैं । कालीकट जिले में एक पहाड़ी पर चरण जिन्हें मुसलमान बाबा आदम के चरण मानते हैं और उनकी जूते निकालकर वंदना करते हैं । इस सबमें प्रमुख चरण हैं विवेकानंद शिला पर देवी के चरण । यहां यह उल्लेखनीय है कि वैदिक धारा के प्रभास पुराण में यह प्रसंग है कि आग्नीध्र की संतति परंपरा में हुए भरत ने जो कि ऋषभदेव के पुत्र थे अपने आठ पुत्रों को आठ द्वीपों का राज्य दिया था और नौवें कुमारी दीप का राज्य अपनी पुत्री को दिया था। भारत के लिए कुमारी नाम तो नहीं चला किंतु भारत के अंतिम छोर का नाम कन्याकुमारी आज तक चला आ रहा है । केरल में इस राजकुमारी की स्मृति मातृसत्तात्मक समाज के रूप में या मरूमक्कतायम् उत्तराधिकार व्यवस्था के रूप में जिसके अनुसार पिता की संपत्ति पुत्री को प्राप्त होती है, आज भी सुरक्षित जान पड़ती है। वैदिक परंपरा में चरण चिन्हों का प्रचलन नहीं के बराबर जान पड़ता है और बौद्ध तो स्तूपों की ओर उन्मुख हैं। इसलिए केरल में ये चरण जैनधर्म के प्रसार की ओर इंगित करते हैं। श्रवणबेलगोल में भी भद्रबाहु के चरण ही अंकित हैं। 688 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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