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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आधुनिक शोध तकनीक में पारंगत पारम्परिक विद्वान डॉ. अनुपम जैन इन्दौर आज जैन समाज का विद्वत वर्ग दो धाराओं में विभक्त है । पहली धारा पारम्परिक रूप से अध्ययन करने वाले शास्त्री और आचार्य करके जैन समाज को प्राचीन ग्रंथों के अनुवाद के माध्यम से अमूल्य सौगात देने वाले विद्वानों की है । इस धारा में पंडित कैलाशचंदजी सिद्धांताचार्य (वाराणसी), पं. जगन्मोहनलाल जी शास्त्री (कटनी), पंडित हीरालालजी शास्त्री (व्यावर), जैसे विद्वान रहे और वर्तमान में संहितासूरि पं. नाथूलाल जैन शास्त्री (इन्दौर) आदि अपनी सेवाएं दे रहे है। दूसरी धारा विश्वविद्यालयीन सेवाओं से जुड़े विद्वानों की है, जिन्होंने शोध प्रबंधों के माध्यम से अनेक अनुसंधान कार्यो को मार्गदर्शन देकर जैन संस्कृति को आगे बढ़ाया है । इस धारा में डॉ. हीरालाल जैन (जबलपुर), डॉ. ए.एन.उपाध्ये (मैसूर), डॉ. दरबारी लाल कोठिया (बीना) के नाम सम्मिलित है । वर्तमान में भी इस श्रृंखला में डॉ. गोकुलचंद जैन (इंदौर), डॉ. कमलचंद सोगानी (जयपुर), डॉ. राजाराम जैन(नोएडा), डॉ. भागचंद भास्कर (नागपुर) डॉ. प्रेमसुमन जैन (श्रवणबेलगोला) आदि महत्वपूर्ण कार्य कर रहे है। ___ डॉ. पं. दयाचंद साहित्याचार्य उन गिने - चुने विरल व्यक्तियों में से एक है । जिन्होंने पारम्परिक शैली से अध्ययन करते हुए साहित्याचार्य की उपाधि प्राप्त की तथा जैन पूजा काव्य पर अपना शोध प्रबंध लिखकर सागर विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि भी ली। उनका शोध प्रबंध कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय ज्ञानपीठ के सम्पादक मंडल ने इसका ज्ञानपीठ से प्रकाशन हेतु चयन किया |जैन पूजा काव्यों पर यह एक अद्वितीय संदर्भ ग्रंथ है। आदरणीय पंडित जी एक अच्छे शिक्षक और शोधक के साथ ही श्रेष्ठ प्रशासक भी थे। उन्होंने गणेश दिगम्बर जैन सं. महाविद्यालय सागर में 55 वर्षों तक शिक्षक और प्राचार्य के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान की। किसी एक संस्था में इतनी लम्बी अवधि तक कार्य करना उनकी विषय के प्रति पारंगतता, व्यावहारिक सोच और समर्पण की भावना को इंगित करता है । उनके प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए 2001में 51000 रुपये की समर्पण राशि सहित विद्वतरत्न की उपाधि प्रदान की गई जो कि उनके गरिमामयी व्यक्तित्व के प्रति समाज की एक भावनात्मक अभिव्यक्ति ही थी। तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत महासंघ ने भी उनको पुरस्कृत कर स्वयं को गौरवान्वित किया है ऐसे आधुनिक शोध में प्रवीण पारम्परिक विद्वान के स्मृति ग्रंथ (साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ) के प्रकाशन अवसर पर मैं विद्वत महासंघ की ओर से श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ एवं आशा करता हूँ कि यह स्मृति ग्रंथ पंडित जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को सम्यक रूप से उद्घाटित कर जैन विद्वत परम्परा की यशवृद्धि में सहायक होगा। (22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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