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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अद्वितीय समर्पण डॉ. जय कुमार जैन विभागाध्यक्ष - एस.डी. कालेज मुजफ्फर नगर सरस्वती पुत्रों के अभिनंदन ग्रंथों के प्रकाशन की परम्परा प्रभावना की दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है। बीसवीं सदी के दिवंगत सरस्वती पुत्रों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व कुछ वर्ष पूर्व पुस्तक रूप से प्रकाशित हो चुके है। पं. डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य प्राचार्य श्री गणेश दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर का सम्पूर्ण जीवन सादगी, संयम, अनुशासन से परिपूर्ण था। वे मनसा, वाचा, कर्मणा आदर्श अध्यापक तथा प्रभावी प्रवाचक थे । “जैन पूजाकाव्य" पर उनका शोधपूर्ण प्रकाशित पुस्तक उनकी विद्वता की अविस्मरणीय कृति है। समाज का हर वर्ग इससे आत्मबोध की शिक्षा ग्रहण कर सकता है ।सन् 1993 में जो विद्वत प्रशिक्षण शिविर उनके कुलपतित्व में आयोजित था, उनकी गाम्भीर्य शंका समाधान शैली देखकर आज भी श्रद्धा से मस्तिष्क झुक जाता है। वे प्राचीन शैली के सारस्वत पुत्र थे। उनकी कीर्ति पताका को स्थायी बनाने में स्मृतिग्रंथ" का प्रकाशन सराहनीय कदम है। उनके दिवंगत चरणों में विनीत आदरांजलि एवं सम्पादक मंडल को साधुवाद प्रेषित है। मार्दव मूर्ति मनीषी पं. शिवचरनलाल जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जैन, विद्वत्महासंद्य वर्तमान के मनीषी एवं हितैषी दोनों रूपों में विख्यात स्व. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य का नाम समादृत रूप में ग्रहणीय है। मेरे स्मृतिपटल पर उनकी अनेक सानिध्यगत स्मृतियाँ विद्यमान है। सन् 1993 में संपन्न सागर मोराजी में विद्वत्प्रशिक्षण शिविर में उनके साथ विशेष रूप से मुझे प्रशिक्षण का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उस समय उनकी कार्यशैली एवं व्यवहार में मृदुता का जो दर्शन हुआ वह अतुलनीय है। उन्हें ज्ञान का अहंकार छू तक न गया था। छोटी से छोटी आयु वाले व न्यून ज्ञानाभ्यासियों से भी वे लघुता एवं वात्सल्य ही प्रकट करते थे। उनकी एक लम्बी शिष्य परम्परा उनको सदैव अमर रखेगी। मैं ऐसे प्रज्ञापुरुष स्वनामधन्य मार्दवशील दयामूर्ति पंडित जी को भाव भीने स्मरणपूर्वक प्रणाम करता हूँ श्रद्धा व्यक्त करता हूँ । वे स्वर्ग में जहां भी हों निरंतर ज्ञानोपयोग बनाये रहें, ऐसी मंगल कामना करता हूँ। (23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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