SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ शुभकामना जैन धर्म के स्वरूप को समझने और समझाने वाले इस पृथ्वी पर विरले ही होते है। तथा उस स्वरूप को अपनी योग्यता के अनुसार धारण करने वाले तो और भी विरले होते है ।इन्हीं विरले विद्वानों में स्व. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य गिने जाते है। जिन्होंने जीवन भर ज्ञानदान का अपूर्व कार्य किया और जलती हुई धर्म की रोशनी को आगे तक प्रकाशित करने में अपना योगदान दिया। ब्र. पुष्पा जैन महान विभूति साहित्याचार्य तर्ज - हूँ स्वतंत्र निश्चल निष्काम ...........(चौपाई) सागर जिला शाहपुर ग्राम जन्मे पंडित दयाचंद्र नाम । पंडित पांचों भाई महान, संस्कार माता के जान ॥ भाषा हित मित शांत स्वभाव, सादा जीवन उच्च थे भाव । नित प्रति भक्ति पूजा पाठ, महामनीषी का ये ठाठ॥ वर्णी गणेश की आज्ञामान, पूरा जीवन बाँटा ज्ञान ।. संस्कृत के प्राचार्य महान, ज्ञान पिलाना जिनका काम ॥ पर निन्दा जो कभी न करते, गुणग्रहण में तत्पर रहते । साधु नगर में जब भी आते, उनको लेने हरदम जाते ।। सरस्वती के वरद पुत्र तुम, विद्वानों के बने मित्र तुम । रही भावना आत्म उत्थान, बन जाएँ हम सिद्ध समान ॥ सृजन किया था पूजा काव्य, तभी बने थे डॉक्टर साब । इससे हुए. जगत विख्यात् अनुपम रहा आपका त्याग । बाहुबली का हुआ अभिषेक, मोरा जी में कार्य विशेष । करते हैं हम तुम पर नाज, कृत कृत्य थी जैन समाज ॥ द्वारे पर हाथी भी आया, मृत्यु महोत्सव पाठ रचाया। बारह फरवरी तन को त्यागा, जीवन अपना सफल बनाया। चतुर्गति भ्रमण को तजने, सम्यक् साधा निज में रमने । विद्या गुरू की महिमा बढ़ाई, आगम की सुषमा फैलाई ॥ दोहा - वीर प्रभु से कामना, पाएं मुक्ति ललाम । श्रृद्धा सुमन समर्पित, सदा रहे निष्काम ॥ - ब्र. सुषमा जैन 16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy