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________________ शुभाशीष / श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ मेरे विद्या गुरु पंडित जी परम श्रद्धेय डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य से मुझे सन् 1981 से 86 तक व्याकरण एवं साहित्य ग्रन्थों का अध्ययन करने का अवसर मिला पं. जी में अनेक विशेषतायें थी जो अन्य विद्वानों में कम ही देखने को मिलती है। वर्णी भवन मोराजी संस्था को आपने अपने से अधिक महत्व दिया । आप संस्थामय होकर रहे। पं. जी | निस्पृहता की मिशाल थे | आपको वर्णी गुरुकुल जबलपुर ने स्वर्ण जयंती समारोह में | सम्मान करके अपना गौरव बढ़ाया परम पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज का आपको विशेष आशीर्वाद था जिसके प्रतिफल अंतिम समय तक वर्णी भवन मोराजी के प्राचार्य पद पर रहकर सेवारत रहे । - ब्र. जिनेश शुभकामना पितातुल्य पंडित जी पंडित जी मेरे लिए पिता के समान अत्यंत आत्मीय थे । वे अत्यंत सरल स्वभावी, मिलनसार, व्यवहार कुशल, स्पष्ट वक्ता थे। आप कर्मठ कार्यकर्ता एवं संस्था के प्रति समर्पित थे । उनके उदार चिंतन में ऐसी विशेषता रहती थी जो मेरे मन पर हमेशा के लिए अमिट छाप छोड़ गई। धर्म के वे पुजारी थे और दृढतापूर्वक उनका पालन करते थे। वे आग्रह से हमेशा दूर रहते थे । मूल सिद्धांतों के पंडित जी स्वभावत: परोपकारी थे। वे दूसरे की पीड़ा में स्वयं दुखी हो उठते थे। कितने ही निराश छात्रों के जीवन में उन्होंने आशा का संचार कर उन्हें प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ाया है। पंडित जी "सादा जीवन उच्च विचार" के मूर्त रूप थे । उनका निरभिमान पांडित्य और सहज उपलब्ध व्यस्त जीवन हमेशा प्रेरणा और स्फूर्ति की भावना भरता था। उन्होंने जीवन भर जैन समाज, धर्म एवं साहित्य की उल्लेखनीय सेवाएँ की है। उनके व्यक्तित्व की मुझे हमेशा याद बनी रहेगी । और हमेशा गर्व रहेगा कि पंडित जी का स्नेह मेरे प्रति अगाध था । जब भी मैं मोराजी जाती तो पंडित जी के पास अवश्य जाती । और पंडित जी बड़ी आत्मीयता के साथ मुस्कराते हुए मुझसे मिलते और उनका हमेशा शब्द रहता आइये - आइये और ऐसे सब कुछ सुनाने लगते जैसे अपना कोई आत्मीय मित्र मिलने पर सुनाने का मन होता । मुझे हमेशा उनका वही चेहरा सामने आ जाता है। मुझे उनकी सरलता बहुत भाती थी । मैं उनके प्रति विनयांजलि अर्पित करते हुए यही भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि उनकी सदगति तो हुई ही होगी लेकिन अगली गति में जल्दी से जल्दी शिव पथ के भाजन बने । ओम शांति Jain Education International 15 For Private & Personal Use Only ब्र. सुशीला जैन ब्राह्मी विद्या आश्रम सागर www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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