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________________ शुभाशीष / श्रद्धांजलि शुभकामना किसी लेखक का कथन है कि विद्या जीवन में उल्लास का, प्रकाश का, अलंकार का और योग्यता का कार्य करती है। इसलिए विद्यावान पुरूष अपने जीवन को स्वर्ग में परिवर्तित कर देता है। इस विद्या से विनय और विनय से पात्रता बढ़ती है । वस्तुत: यह कथन सत्य ही प्रतीत होता हैं। विद्या से भूषित मनुष्य सरस्वती पुत्र कहलाता है और सरस्वती पुत्रों के सम्मान एवं अभिनंदन की परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। यह भारतवर्ष का गौरव है कि यहाँ प्राचीन काल से वर्तमान तक अनेकों मनीषी, आर्षमार्गी विद्वान होते आये हैं, जिन्होंने जिनवाणी की सच्ची सेवा कर जिनशासन का मस्तक सदैव गर्व से ऊँचा किया है ओर अपनी आत्मा को भी समुन्नत किया है। विद्वानों की उसी श्रृंखला में सरस्वती पुत्र डॉ. पं. दयाचंद्र साहित्याचार्य जी भी एक थे जिनकी प्रतिभा की स्मृति मृत ग्रंथ प्रकाशन एक प्रशंसनीय कार्य है। साहित्याचार्य, सिद्धांत शास्त्री, विद्वत्रत्न एवं साहित्यभूषण आदि पदवियों से समन्वित पं. श्री दयाचंद जी से मेरा भी विगत अनेक वर्षो से संपर्क रहा है, वे समय समय पर दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा आयोजित संगोष्ठी - सेमिनार में आते रहते थे । सम्यग्दृष्टि, भद्रपरिणामी पं. जी ने अनेकों कृतियों का लेखन व सम्पादन किया तथा लगभग 50 वर्षो तक धर्मप्रभावना हेतु पर्युषण पर्व में प्रवचन आदि अनेकों प्रभावक कार्य किए। जिनका संपूर्ण जीवन अनुशासन और प्रभावना से परिपूर्ण रहा है । ऐसे गौरवमयी व्यक्तित्व को उनके सम्पूर्ण कार्यकलापों को देखते हुए वर्ष 2001 में "तीर्थंकर ऋषभदेव विद्वत् महासंघ" द्वारा प्रयाग इलाहाबाद (उ.प्र.) में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के ससंघ सानिध्य में सम्मानित भी किया गया था। मुझे बहुत प्रसन्नता है कि ऐसे बहुश्रुत मनीषी विद्वान का स्मृति ग्रंथ "साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ" नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। इस ग्रंथ के प्रकाशन में संलग्न सभी संपादकों, ब्रह्मचारी-ब्रह्मचारिणी बहनों एवं श्रेष्ठीवर्ग के लिए मेरी बहुत - बहुत शुभकामना है कि वे इसी प्रकार सरस्वती पुत्रों का सम्मान कर वर्तमान पीढ़ी को जिनवाणी सेवा की प्रेरणा प्रदान करते रहें । कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जैनं जयतु शासनम् - विनयाञ्जलि पूज्य पिताजी प्रतिष्ठाचार्य पंडित गुलाबचंद्र जी "पुष्प एवं मुझे (ब्र. जय निशान्त) को यह ज्ञात कर प्रसन्नता है कि पुरानी पीढ़ी के समर्पित सरस्वती पुत्र पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य पूर्व प्राचार्य श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर के व्यक्तित्व एवं कृतित्त्व पर आधारित स्मृति ग्रंथ " साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ " नाम से प्रकाशित Jain Education International रहा है। जब जब मैं सागर विद्यालय गया थोड़ी बहुत चर्चा पं. श्री से हो जाती थी। वे पूज्य वर्णीजी महाराज के परम आज्ञानुवर्ती शिष्य थे स्व. पंडित पन्नालाल के उत्तराधिकारी के रूप में वे संस्कृत विद्यालय के कुशल, अनुशासनशील प्राचार्य बने । "जैन पूजा काव्य" पर उन्होंने अपना शोध आलेख लिखा जिस पर उन्हें पी. एच. डी. की उपाधि सर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय से प्राप्त हुई। मेरा पूरा परिवार दिवंगत व्यक्तित्व का पावन स्मरण कर विनयाञ्जली अर्पित करता है। स्मृति ग्रंथ के सभी संपादक मंडल को इस श्रेय कार्य के प्रकाशन सहयोग हेतु मंगलकामनायें । - ब्र. जय निशान्त 14 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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