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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ काश्यां काश्मीरदेशे कुरूसु च मगधे कौशले कामरुपे कच्छे काले कलिंगे जनपदमहिते जांगलान्ते कुरादौ । किष्किन्धे मल्लदेशे सुकृतिजनमनस्तोषदे धर्मवृष्टिं कुर्वन शास्ता जिनेन्द्रो विहरति नियतं तं यजैऽहं त्रिकालम् (प्रतिषठासार संग्रह-इत्यादि) दत्वा किमिच्छुकं दानं समाऽभि: य: प्रर्वत्यते । कल्पवृक्षमहः सोऽपं जगदाशाप्रपूर्णाः। (सागारधर्मामृत) इच्छानुसार प्रजा को दान देकर चक्रवती सम्राट द्वारा जो भगवत्पूजन की जाती है वह प्रजा के सर्व मनोरथों को पूर्ण करने वाली कल्पवृक्ष पूजन प्रसिद्ध है। धर्मग्रंथों के अर्चाप्रकरणों में कथित पांच प्रकार की पूजनों में यह चतुर्थ पूजन है। इसमें धार्मिक साधना के साथ राष्ट्रीय साधना का भी समावेश है। धर्मग्रन्थों ने श्रीतिलक, म. गांधी आदि नेताओं को राष्ट्रीयता के प्रचार में निम्नलिखित कर्तव्य और सिद्धांत प्रदान किये हैं जिनके द्वारा राष्ट्रों का महान हित हुआ है स्वतंत्रता प्राप्त हुई है 1. अहिंसा, 2. सहनशीलता, 3. त्याग. 4. मांस त्याग, 5. मादक पदार्थ का त्याग, 6. स्वावलम्बन, 7. ब्रह्मचर्य, 8. शोषण- चोरी का त्याग, 9. विलासिता का त्याग, 10. निर्भयता, 11. विश्वप्रेम, 12. रेशमी, 13. मखबली वस्त्रों का त्याग, 14. अनशन, 15. कायक्लेश, 16. प्रतिज्ञा, 17. सत्याचरण, 18. सेवाधर्म, 19.साम्यवाद, 20. न्याय, 21. नैतिक शिक्षा, 22. अपरिग्रहवाद, 23. अनेकांतवाद । ___ अत: यह सिद्ध है कि राष्ट्रीयता और आध्यात्मिकता का घनिष्ट सम्बन्ध है, विश्व हित के लिये उन दोनों के समन्वय की अविरोधरूपेण आवश्यकता है। अन्यदेशों में धार्मिकता और राष्ट्रीयता का उचित समन्वय नहीं है। वहां एकांत राष्ट्रीयता का ही प्रचार अधिक है , आध्यात्मिकता न होने से ही उन देशों में विश्व शांति नहीं है किन्तु असंतोष ही बढ़ रहा है। इसके कारण ही विश्वयुद्ध गृहयुद्ध, हाइड्रोजन बम, एटमबम आदि घातक प्रयोगों का जन्म होता है, ये प्रयोग विश्व रक्षण के लिये नहीं किंतु विश्व भक्षण के लिये होते हैं। अत: विश्वरक्षा या शांति के लिये उक्त दोनों के समन्वय की आवश्यकता है। प्राचीन भारत विश्व का नेता, स्वतंत्र, उन्नत, राष्ट्र था, समृद्धशाली था, जब उक्त दोनों सिद्धांतों का समन्वय भारत से लुप्त होता गया तो भारत परतन्त्र हुआ, पतन की सीमा पर आया । समय आने पर भारतीय नेता जागृत हुए, उन्होंने इस पातित भारत में उक्त दोनों सिद्धान्तों का समन्वय करना प्रारंभ किया। गांधीवाद का प्रचार किया गया। फिर भी वर्तमान में भारत में आध्यात्मिकता और राष्ट्रीयता का उचित समन्वय नहीं हो पाया है अतएव भारत अब तक पूर्ण स्वस्थ नहीं हो सका है। अत: इन तीर्थकरत्रय के आदर्श से उसे अपनी राष्ट्रीयता को अहिंसा धर्म में अनुरंजित करने का पाठ पढ़ना उचित है। ___मानव को दोनों के समन्वय में पुरुषार्थ करना आवश्यक है। इसी में उसका कल्याण है तीर्थकरों का जीवन पुकार पुकार कर यही कह रहा है। विश्व इसे सुने और अपना कल्याण करे। -200 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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