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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अनुकरणीय व्यक्तित्व - पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य डॉ. आशा जैन, पीएच.डी. विश्वविद्यालय,सागर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉ. पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य मेरे आदर्श गुरूवर थे। वे साधुमना, स्वाभिमानी, मधुर वक्ता, सफल शिक्षक, लेखक, अनुवादक, टीकाकार, संपादक, एवं साहित्य साधना के लिए समर्पित जीवन के रूप में समाज में बहुचर्चित थे। मुख्य रूप से जीवकांड, कर्मकाण्ड के कुशल ज्ञाता होते हुए प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं अष्ट सहस्त्री जैसे जटिल दर्शन शास्त्र के प्रकांड पंडितों में से माने जाते है। श्री स्वामी समन्तभद्राचार्य, भट्टाकलंक स्वामी एवं पूज्यपाद स्वामी आदि महान आचार्यो द्वारा विरचित करणानुयोग के साथ सभी अनुयोगों के अंतर रहस्य को विद्यार्थी के मानसपटल पर सरल एवं सौम्य भाषा में अंकित करने में विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न विद्वान थे। पंडित दयाचंद्र जी का आकर्षक व्यक्तित्व था। स्वच्छ धोती, कुरता, खादी की टोपी सामान्य लंबा शरीर, कान्तिमय चेहरा, चश्मा, प्रोल्लसित मुख और वैदुष्यपूर्ण वाणी से सभी को अपनी ओर आकर्षित किए रहते थे। जिस तरह से वे ज्ञान के भंडार थे, उसी तरह से सदाचारी और जीवन निर्माण के क्षेत्र में भी अग्रणी थे। पंडित दयाचंद साहित्याचार्य जी मेरे लिए पिता के समान आदरणीय थे। उनके साथ मेरा रिश्ता तो नहीं था परंतु उनके पास बैठकर कुछ समय अवश्य मैंने बिताया और कई बातों में मैंने उन्हें गुरू मानकर उनका अनुकरण भी किया। उनके साथ अधिकतम सानिध्य का लाभ मुझे तब मिला जब मैंने "पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी के शैक्षणिक योगदान का विश्लेषणात्मक अध्ययन शोध कार्य किया " उनसे मुझे हमेशा स्नेहपूर्ण सहयोग और आत्मबल मिलता था । मैं जब जब जिज्ञासा वश अपनी समस्याओं को लेकर पहुँचती थी तब उनके पास से पूर्ण मनोरथ होकर ही लौटती थी। शोधकार्य के समय :- मैं कभी कभी बहुत निराश हो जाती थी तब वे बड़े ही धैर्यपूर्वक मेरी हर समस्या का समाधान कर देते थे। अपने कर्त्तव्यों के प्रति सदैव सजग रहते थे। उन्हें कितना भी शारीरिक कष्ट क्यों न हो, पर वे अपने कार्य किये बिना नहीं रहते थे। बीमारी की हालत में भी मुझसे धार्मिक चर्चा करते रहते थे। मैं जब भी उनके पास बैठकर धार्मिक चर्चा करती थी तो वे बड़े प्रसन्न हो जाते थे क्योंकि उन्हें इस बात की हार्दिक प्रसन्नता होती थी कि मैं वर्णी जी पर शोध कार्य कर रही हूँ उन्होंने स्वयं वर्णी जी के सानिध्य में रहकर जैन धर्म की उत्कृष्ट शिक्षा प्राप्त की थी। पंडित दयाचंद जी के पिता जी ने उन्हें पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी के करकमलों में सौंप दिया था। यह वर्णी जी के ही आर्शीवाद का फल था कि पंडित दयाचंद्र जी का जीवन आगमानुकूल लगातार अध्ययन के फलस्वरूप बौद्धिक विकास से ज्ञान के सर्वोच्च शिखर को छू सकने में सफल हुआ। श्री दयाचंद्र जी को पंडित दयाचंद्र साहित्याचार्य की प्रतिष्ठा से महिमामंडित करने का पावन श्रेय (131) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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