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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी जी को ही जाता है। अपने अध्ययन काल में अनेक उतार चढ़ावों से जूझते हुए नित्य नये प्रकाश को प्राप्त करते हुए विद्यार्जन करते रहे । विद्यार्जन के पश्चात् जीवकोपार्जन की ओर चित्तवृत्ति का जाना स्वाभाविक था। चूंकि वर्णी जी के प्रयास से ही श्री दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना वर्णी भवन मोराजी में हुई थी तथा सौभाग्यवश संरस्वती पुत्र डॉ. पंडित दयाचंद्र साहित्याचार्य उसी विद्यालय में प्राचार्य के पद पर प्रतिष्ठित हुए एवं आजीवन विद्यालय की सेवा में तत्पर रहे । ___ अनेक विषम परिस्थितियों से जूझते हुए वे कभी अपने जीवन में विचलित नहीं हुए। वे दयालु प्रवृत्ति के थे साथ ही क्षमाशील व दानवीर भी थे। उनके जीवन के दो उदाहरण क्रमशः प्रस्तुत कर रही हूँ। प्रथम यह कि वे अपने विद्यार्थियों से पुत्रवत् स्नेह रखते थे, जब विद्यार्थी उनकी कक्षा में होमवर्क नहीं करके लाते थे तो वे एक छोटा सा बेंत अवश्य दिखाते थे पर मारते नहीं थे। केवल उससे डराते और धमकाते थे। सिर्फ इतना ही कहते थे कि "क्यों होमवर्क क्यों नही किया ?" बच्चों को उनकी यह वाणी झकझोरे बिना नहीं रहती थी वे दूसरे दिन अवश्य होमवर्क करके लाते थे। द्वितीय बात यह कि वे भारत वर्ष के विभिन्न शहरों में आमंत्रित होकर पयूषण पर्व में प्रवचन हेतु जाते थे और धर्म - प्रभावना कर स्वयं सम्मानित होकर विद्यालय को गौरवान्वित करते थे एवं सम्मान राशि विद्यालय को दान कर देते थे। आज पंडित दयाचंद्र साहित्याचार्य जी हमारे बीच नहीं हैं केवल उनकी स्मृति शेष रह गई है । स्मृति ग्रंथ प्रकाशन प्रशंसनीय कार्य है और वर्णी जी के सच्चे अनुयायी पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित करती हूँ। पंडित जी को मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजली। यथा नाम तथा गुण पंडित दयाचंद्र जी श्रीमती मणि केसली, प्रा. चेअर पर्सन अ.भा. दि. जैन महिला परिषद् पंडित दयाचंद्र जी का यथा नाम तथा गुण को परिभाषित करने वाला व्यक्तित्व कुछ अनोखा अनुपम एवं श्रेष्ठतम ही था । ऐसे ही उत्कृष्ट व्यक्तित्व के धनी बुंदेलखण्ड के गौरव एवं आदर्श पूर्ण जीवन से स्वयं का एवं पर का जीवन आलोकित करने वाले महान विद्वान, मनीषी जीवन में कम ही देखने को प्राप्त होते है। मेरे परम सौभाग्य ही था कि पंडित जी की महान जीवन शैली को पड़ोसी होने के नाते निकट से देखने का अवसर प्राप्त हुआ। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पंडित जी को अभिमान न था। चाहे कितने भी बड़े सम्मान से सम्मानित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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