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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ लगाये पाठ करने से अधिक लाभ नहीं है। प्रतिदिन 1 घंटे खड़े होकर पूजन करते थे, एक घंटे में एक ही पूजन होती थी। कोई भी धर्म विषय पढ़कर चिंतन करते थे। कभी कभी रात्रि में जब नींद नहीं आती थी तो चिंतन करते थे। एक बार अस्वस्थ्य हो गये तो रात्रि में नींद नहीं आई, सुबह उठकर कहने लगे आज हमने रात भर स्वस्ति मंगल पढ़ा है, "स्वस्ति क्रियासु परमर्षयो न:"। आगे फिर कभी नींद नहीं आई तो आज हम रात में तीन स्तोत्रों के भाव अर्थ लगाते रहे । इस प्रकार उनका चिंतन चलता रहता था। इन्द्रिय विषयों से उदासीनता - भोजन में उन्हें कोई असक्ति नहीं रह गई थी। हाथ जोड़कर बोले कि किरण हमसे भोजन करने की नहीं कहा करों, हमें खाने की कोई इच्छा नहीं है, तुम हमें खाने के लिए बहुत कहती हो, हमने कहा पिताजी ! हम खाने की इसलिए कहते है कि तुम्हें गर्मी न बढ़ जाये और शरीर की शक्ति न टूट जाये, तो बोले - हाँ, तो कम से कम खाने दिया करो, तो हमने शाम को कम खाने दिया, ऐसा कहकर चुप हो गये। जब रात्रि में सोये तो उन्होंने शाहपुर के गजरथ की सातों फेरी स्वप्न में देखी। सुबह उठकर बोले देखो किरण हमने कहा था कि हमें कम खाने दिया करो, कम खाने से कितना अच्छा स्वप्न आया कि हमने शाहपुर के गजरथ की सातों फेरी देखी । ऐसे शुभ भाव बनाये रखते थे। __ कभी कपड़े बनवाने की बात हम करते थे तो एक दम इन्कार कर देते थे कि हमें कुछ नहीं बनवाना है बस इतने ही बहुत हैं। इस प्रकार किसी भी इन्द्रिय के प्रति विषयों में कोई असक्ति नहीं रह गई थी। देहान्त के दो दिन पहले हमने पिताजी को पेड़ा रसगुल्ला खाने को दिये, किसी भी चीज में हाथ नहीं लगाया। पिताजी को बुखार था बुखार में भी धीरे धीरे चलते फिरते रहते थे। एक दिन पहले ऑफिस में जाकर बैठ गये । सबसे धीरे धीरे बातें करते रहे, और कुछ देर बाद घर आ गये, हमने कहा पिताजी कहाँ गये थे ? आप की शक्ति नहीं थी। बोले हमें आज अच्छा नहीं लग रहा था सो ऑफिस में जाकर बैठ गए थे। वहाँ से आकर फिर सो गए । हम नहीं समझ पाये कि हमारे पिताजी कल यहाँ से चले जायेंगे। ___ तारीख 11 फरवरी शाम से शिथिलता आने लगी थी। रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग, परिग्रह का त्याग कर के सोये थे। एक दिन पहले शुद्ध वस्त्र रख लिये कि कल बाहुबलि भगवान का अभिषेक करेगें, लेकिन सुबह होते ही उल्टी श्वांस चलने लगी थी, अभिषेक के लिए नहीं जा पाये थे, लेकिन अभिषेक होने की ध्वनि नीचे से ही सुन रहे थे, बुद्धि पूर्वक णमोकार मंत्र का स्मरण कर रहे थे और दूसरों के द्वारा भी मंत्र सुन रहे थे। सुबह पुन: चारों प्रकार के आहार का त्याग, परिग्रह का त्याग करा दिया था। वर्णी कालोनी से अभिषेक के लिए मंगल कलश भी उसी समय आ रहे थे, साथ में हाथी भी था जो घर के दरवाजे पर मंगल सूचक खड़ा था । माघ सुदी पूर्णिमा को बाहुबलि भगवान के अभिषेक के समय शुभ मुहूर्त में सामायिक काल में महामंत्र का चिंतन करते हुए अपने जीवन की अंतिम यात्रा समाप्त की। माघ सुदी पूर्णिमा की रात्रि में ही शाहपुर में सुबह चार बजे स्वप्न दे दिया कि "तुम लोग दुखी मत हो हम तो बारह भावना का चिंतन करते हुए आ गये थे" बस एक शब्द कहकर स्वप्न समाप्त हो गया। स्वप्न में बहुत तेज प्रकाश था एक दम सफेद धोती दुपट्टा पहने हुए थे। एक वाक्य कहकर स्वप्न समाप्त हो गया। वह स्वप्न सदा स्मरण रहता है। हमारे पिताजी सदा के लिए हमसे विदा हो गये। -130 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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