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________________ व्यक्तित्व जिनका आशीर्वाद हमें मिला अटल निश्चयी गुरुवर अरविन्द कुमार जैन, प्रबंधक / परीक्षाधिकारी कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर विद्वान समाज रूपी मंदिर के स्वर्ण कलश है। कलश के बिना मंदिर की और विद्वान के बिना समाज की गरिमा में निखार नहीं आता । जैन दर्शन के वरिष्ठ मूर्धन्य विद्वान, जैन विद्या के अप्रतिम मनीषी, उच्चकोटि के सहृदय, लब्ध प्रतिष्ठित, समर्पित और जागरूक शिक्षक, आदर्श और सफल, क्षमा, मार्दव और चतुर्मुखी प्रतिभा सम्पन्न, अद्वितीय सौम्य व्यक्तित्व के कर्तव्यशील, जैन जगत के गौरव, जैन जग की अमूल्य निधि, मार्ग दर्शक, समता-ममता के अनुरंजक जीवन मूल्यों के प्रति आस्थावान, सरल, सहज एवं स्नेही विनम्रता की साकार जीवन्त प्रतिमूर्ति, जीवन पथ प्रदर्शक, प्रेरणा एवं स्फूर्ति के स्रोत, निश्चल और अध्ययनशील, कर्मयोगी, मधुर व्यवहारी, धर्मानुरागी, साहित्यसेवी, तत्वज्ञान के भण्डारी, महामनीषी, कर्मठ, गहरे और उदार, निर्लोभी, मुनि भक्त डॉ. (पं.) दयाचंद जी साहित्याचार्य सदा जयवंत रहेंगे। उनकी अप्रतिम सेवायें अविस्मरणीय योगदान तथा आत्मज्ञान का अखण्डदीप शाश्वत जलता रहेगा । साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ गुरुवर का सानिध्य अविस्मरणीय है। शिष्य के साथ ही मुझे उनसे पुत्रवत् स्नेह मिला है जिसको मैंने आत्मसात किया । जिसको शब्दों में अंकित करना सूर्य के सामने दीपक जैसा है। उनके द्वारा किये गये उपकार का मैं सदैव ऋणी रहूँगा । गुरुवर आज हमारे बीच भले ही न हो लेकिन उनका आशीर्वाद व वात्सल्यपूर्ण स्नेह व मार्गदर्शन मेरी जिन्दगी में हमेशा साथ रहेगा । शत् शत् नमन / वंदन । Jain Education International गुरूओं के भी गुरू थे पंडित जी डॉ. संजय शास्त्री, तिगोड़ा मुझे याद है, जब मैं पंडित जी के द्वारा दिये गये परीक्षा मुख के सूत्रों को कंठस्थ कर के सुनाया करता था तो वह प्रसन्नता से कहते थे ठीक है इसे सअर्थ करो। उनके बोलने की शैली निराली थी कभी एक मिनिट किसी कार्य के लिए लेट हो गये तो पंडित जी कहा करते थे कि समय का ध्यान रखो समय बहुत कीमती है । एक मिनिट की कीमत एक-एक लाख रूपये बराबर मानो क्योंकि समय जाने के बाद लौटता नहीं। उनके गुण उनको जानने वालों के मन में सदा जीवंत रखेंगे। मुझे याद है सुबह चार बजे वर्णी स्मारक के कई चक्कर लगाया करते थे । विद्यालय में अध्ययनस्थ विद्यार्थियों को कहा करते थे कि सुबह थोड़ा 112 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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