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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ (4) सत्पथ प्रदर्शक :- परम श्रद्धेय गुरुवर पंडित जी साहब ने सदैव दूसरों (जनसामान्य) को जनकल्याण की भावना से सन्मार्ग दिखाने का कार्य किया है। आप सच्चे पथ प्रदर्शक, परम हितैषी थे, जो कि आपने भटके हुए जन - जन को सच्ची राह दिखाकर अध्यात्म के पथ पर अग्रसर करके आत्मकल्याण करने की प्रेरणा प्रदान की है। जिससे जैन धर्मावलम्बियों ने आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है। यह आपकी श्रीकृपा का ही प्रतिफल है। (5) अध्यात्मवेत्ता :- श्रद्धेय पंडित जी साहब, आप जैनधर्म के मर्मज्ञ, चारों अनुयोगों के ज्ञाता, जिनवाणी के विज्ञपुरुष, जैन साहित्य के रसिक, जिन शासन की धर्मपताका फहराने वाले मनीषी है। आपने अपना सम्पूर्ण जीवन "माँ भगवती जिनवाणी' की सेवा में समर्पित किया है। माँ सरस्वती के आप वरदपुत्र थे। माँ भगवती शारदे की कृपा दृष्टि का वरदहस्थ आप पर था । आपने जैनधर्म के शास्त्रों के अलावा अन्य संप्रदायों या धर्मो के भी रसास्वादु बन ज्ञानधन में अभिवृद्धि की। अत: आप हम सभी के लिए आदर्श है । आपका आचरण अनुकरणीय है। (6) कुशल प्रशासक :- श्रद्धेय पंडित जी साहब आप अनुशासन के सशक्त प्रहरी रहे हैं । आप समय के पाबंद होकर आपने विद्यालय के छात्रों के जीवन में अनुशासन की अमिट छाप अंकित की है। जो आज भी हम सभी के जीवन का प्रमुख संबल है। आपने अपना सारा जीवन माँ सरस्वती को अर्पित कर विद्यालय एवं अन्य स्तर पर ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। आपका यह उपकार कभी हम विस्मृत नहीं कर सकेंगे। आपने विद्यालय में साहित्य का चिंतन करते हुए श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय सागर (म.प्र.) के प्राचार्य के पद को कई वर्षों तक सुशोभित किया है। साथ ही आपने उस पद की भूमिका का निर्वहन बड़ी सहजता एवं कुशल प्रशासक के रूप में किया । जो युगों - युगों तक चिरस्मरणीय रहेगा। ऐसी हमारी मंगलमय भावना आपके श्री चरणों में समर्पित है। (7) साहित्य सृजेता :- आप जैन धर्म के साहित्य मनीषी होने के साथ आपने जैन साहित्य का सृजन किया है आपने इसी कड़ी में जैन साहित्य में जैन पूजा काव्य का सृजन कर डाक्ट्र रेट की मानद उपाधि से विभूषित होकर जैन समाज को नया मार्ग प्रशस्त किया है। आपकी यह अनुपम कृति जन जन के लिए कल्याणकारी होगी। जो हम सभी के जीवन का प्रमुख आधार होगी । आपकी अनुपम कृति सदा जीवंत रहे एवं युगों - युगों तक जन जन का मार्ग प्रशस्त करती रहेगी। (8) विद्वत्वर्य :- परम श्रद्धेय पंडित जी साहब जैनधर्म की गुरु परम्परा के मूर्धन्य मनीषी थै । आपका जैन धर्म के मूर्धन्य विद्वानों में अग्रणीय स्थान रहा विद्वत्जगत के आप चांद थे , जो कि अपनी अद्भुत ज्ञानकला से जन जन को सुसंस्कारित किया है। उस उपकार को हम कभी नहीं भुला सकते । अत: आपका उपकार हमारे जीवन में चिरस्मरणीय रहेगा। ____ अंत में हमारी यही मंगल कामना है कि साहित्य मनीषी परम श्रद्धेय गुरुवर, स्व. श्री पंडित दयाचंद जी साहब की यह स्मृति स्वरूप कृति स्मृति ग्रन्थ सदा जयवंत हो । पंडित प्रवर स्व. श्री पं. दयाचंद साहित्याचार्य जी की पावन स्मृति में उनके चरण कमलों में अश्रु पूरित विनयांजलि अर्पित करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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