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________________ १८ : सरस्वती - वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थं सादा जीवन और उच्च विचारके धनी • पं० सत्यंधर कुमार सेठी, उज्जैन अभी मैं विद्वत्परिषद तथा महासमितिके अधिवेशनों में आगरा गया था। तब बनारस के सम्मानीय विद्वान् बाबूलालजी फागुल्लने चर्चा में कहा कि सेठीजी आपको यह जानकार हर्ष होगा कि हम समाज के प्रसिद्ध विद्वान् माननीय पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य जैसे महाविद्वान् ही सेवाओं व समर्पित जीवनके प्रति कृतज्ञता प्रकाशनार्थं एक अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशित करने की योजना बना रहे हैं जिसमें आपका भी सहयोग वांछनीय है । यह सुनते ही मेरे हृदयने आवाज दी कि आज भी जैन समाज में विद्वानोंके प्रति अगाध श्रद्धा और उच्चतम भावनायें हैं जो किसी-न-किसी रूप में अपनी कृतज्ञता प्रकाशित करके श्रद्धासुमन उनके चरणों में अर्पित करना चाहता है । जैन समाजने व्यक्ति विशेषको महत्त्व कभी नहीं दिया है । यह समाज हमेशा गुणोंकी ही पूजा करता आ रहा है । सम्मानीय पण्डितजीका यह अभिनन्दन ग्रन्थ वर्तमान पीढ़ीके लिए ही नहीं किन्तु भावी पीढ़ी के लिए भी प्रेरणा दायक होगा - ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है । अनन्य भक्त विद्वान् हैं । आपका चिंतन बहुत यह निर्णय लिया कि आप सही रूपमें निर्लिप्त श्रद्धेय पण्डित बंशीधरजी जैन जगत् के विद्वानोंमें एक आदर्श और उत्कष्ट विचारोंके विद्वान् हैं। मैं उनके प्रत्यक्ष दर्शन द्रोणगिरि सिद्ध क्षेत्रपर होनेवाले गजरथ महोत्सव के समय किये थे । उस समय अखिलविश्व जैन मिशनका अधिवेशन था, तब मुझे भी जानेका सौभाग्य मिला था । प्रथम प्रवचन में ही मैं श्रद्धेय पण्डितजीके विचारोंसे काफी प्रभावित हुआ । मैं उनके निवास स्थानपर पहुँचा । कई धार्मिक और सामाजिक चर्चायें आपसे मैंने कीं । जिससे ज्ञात हुआ कि आप कर्मकाण्डी विद्वान् नहीं है । आपका झुकाव अर्न्तजीवन को टटोलपर है, और वास्तवमें वे भगवान् कुन्दकुन्द के विचारोंके विशाल है और गृहस्थ होते हुए भी आपके विचारोंसे मैंने जीवनके धनी हैं । द्रोणगिरिके बाद किसी व्यक्तिगत प्रसंगको लेकर कई बार आपके घरपर ठहरनेका मुझे सौभाग्य मिला है | आपका आतिथ्य सत्कार भी बड़ा बेजोड़ है । महाविद्वान होते हुए भी मैंने हमेशा आपको विनम्रताकी मूर्तिके रूपमें ही देखा । न आपके जीवन में कोई दिखावा है और न किसी भी प्रकारका प्रदर्शन । सादा जीवन और उदार विचार ही आपके जीवनका लक्ष्य है । आपने अपने जीवन कालमें साहित्यिक सेवायें तो की है, लेकिन आपने राष्ट्रीय आन्दोलन में भी सक्रिय रहकर जैन समाज का मस्तक ऊँचा किया हैं । जीवन मैं जेल जानेका भी आपको सौभाग्य मिला है । जैन समाज में समय - समयमें अनेक आन्दोलन चले हैं लेकिन उन आन्दोलनोंमे आपने अपने आपको कभी नहीं उलझाया हमेशा आप ज्ञाता और दृष्टाके रूपमें ही रहे और आज भी हैं । आप अद्भुत प्रतिभा के धनी विद्वान् है अतः विद्वत् परिषद जैसी महान संस्थाका नेतृत्व करके आपने समाजको ही मार्ग दर्शन नहीं दिया, विद्वानों को भी मार्ग दर्शन देकर जैन दर्शन की अनुकरणीय सेवा की है । विद्वानोंको आज भी आपकी विद्वत्ताके प्रति श्रद्धा और गौरव है । और विद्वज्जन उनको अभिनन्दनीय मानकर उनके प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट करते हैं । ऐसे महाविद्वान् के चरणोंमें श्रद्धा प्रकट करता हुआ मैं भी अपने आपको धन्य मानता हूँ। और भगवान् महावीर से प्रार्थना करता हूँ कि माननीय पण्डितजी शतजीवि बनकर इसी तरह समाज, देश व राष्ट्रको मार्ग दर्शन देते रहें । शुभकामनाएँ • प्रो० फूलचन्द्र सेठी, खुरई पण्डित वंशीधरजी व्याकरणाचार्य, बीनाके सम्बन्धमे अभिनन्दन ग्रन्थ छप रहा है । में श्रद्धेय पण्डित - जीकी दीर्घायुकी शुभकामनाएँ प्रेषित कर रहा हूँ । ईश्वरसे प्रार्थना है कि वे दीर्घायु हों तथा जैनधर्मकी सेवा अपनी लेखनी द्वारा निरंतर करते रहें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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