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________________ १/ आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : १७ अनुपम व्यक्तित्वको मूर्ति .श्री गुलाबचन्द्र ‘पुष्प', प्रतिष्ठाचार्य, टीकमगढ़ - 'सोंरई' ग्रामकी धरा धन्य है, जहाँ संवत् १९६२ में शील-सप्तमीकी पावन बेलामें पं० मुकुन्दलालजीकी धर्मपत्नी श्रीमती राधाबाईको पवित्र कंखसे जैनसिद्धातके आराधक एवं देशभक्तका जन्म हआ। शिशका नाम रखा गया बंशीधर । बंशीधर सचमुच में बंशीधर थे, जिनकी बंशीको सुनकर लोगोंकी भीड़ लग जाती थी । आज भी जिनके आगम-ज्ञानको पाकर जनता आत्म-विभोर हो जाती है। प्राथमिक शिक्षा जन्मभूमि-सोरईके प्राइमरी स्कूलमें पायी और उच्च शिक्षा उस प्राचीन नगरी वाराणसीके स्याद्वाद महाविद्यालयमें ग्रहण की, जहाँ सातवें तीर्थकर सुपार्श्वनाथ और तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ ने जन्म लेकर उसे पावन एवं विश्रत किया। सान्निध्य मिला अध्यात्मवेत्ता पूज्य श्री गणेशप्रसाद वर्णी जैसे महान् गुरुका। फिर क्यों नहीं प्रकाण्ड विद्वान होते। व्याकरण, साहित्य, न्यायके प्रखर विद्वान होते हए भी जैनागमके आप अद्वितीयवेत्ता और साधक हैं। आपने आगमके रहस्यको खोला और 'जैन शासनमें निश्चय और व्यवहार' जैसे अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियोंमें भी आप अग्रणी हैं । देशभक्ति भी आपमें कूट-कूट कर भरी हुई है। फलतः आप 'स्वतन्त्रता सेनानी' भी हैं। . ऐसे व्यक्तित्वका सम्मान करना राष्ट्र और समाजके लिए सर्वथा उचित है। हमें प्रसन्नता है कि उनकी सेवाओंके उपलक्ष्यमें उन्हें अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया जा रहा है। हम उनके दीर्घ जीवनकी कामना करते हुए अपनी विनयाञ्जलि अर्पित करते हैं। जैनधर्म और सिद्धान्तके अधिकारी विद्वान् • प्रो० प्रवीणचन्द्र जैन निदेशक-जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी व्याकरणाचार्य पं. बंशीधर न्यायतीर्थ उन कतिपय विशिष्ट विद्वानोंमेंसे एक हैं जो सुदीर्घ कालसे भारतीय समाजके राष्ट्रीय और आध्यात्मिक अभ्युत्थानमें अपना बहुमुखी योग देते रहे हैं। आप जैनधर्म और सिद्धान्तके मर्मज्ञ और अधिकारी विद्वान् है। तत्त्वोंकी चर्चा, उनका समीक्षण, निश्चय और व्यवहार, भाग्य और पुरुषार्थ तथा पर्यायोंकी क्रमबद्धता जैसे महत्त्वपूर्ण और जटिल विषयोंपर प्रांजल भाषामें लिखो हुई आपकी अनेक कृतियों और पत्र-पत्रिकाओंमें प्रकाशित होते रहनेवाले लेख, जहाँ आपकी पाण्डित्यपूर्ण प्रतिभाका प्रकाश करते हैं वहाँ उनसे समाजके उदीयमान युवावर्गको दिशा और प्रेरणा मिलती है। अनेक पत्र-पत्रिकाओंके सम्पादन तथा समारोहोंके आयोजनोंसे आप समाजके निकट सम्पर्क में आते रहे हैं। इससे समाज को निश्चय ही बहुआयामी लाभ मिले हैं। देशके स्वातन्त्र्य संग्राममें आपने जो कर्मठता दिखायी है बह आजकी पीढीको अनेक समस्याओंसे घिरे हए भारतकी विकासोन्मुख प्रवृत्तियोंमें सजीव योग देते रहनेकी प्रेरणा देती रहेगी। आप जैसे प्रबुद्ध मानवका अभिनन्दन और सम्मान निश्चय ही समाजके गौरवको बढ़ानेवाला एक प्रशस्त कार्य है। इसे जितने उत्साह और वैभवके साथ सम्पन्न किया जा सके, करना चाहिये। यह हम सब लोगोंका परम कर्तव्य है। अभिनन्दनके इस बडे अवसरपर मैं चौरासी वर्षीय महामना पं० बंशोधर जीके लिए अपनी शुभकामनाएँ अर्पित करता हैं। वे दीर्घायु हों और स्वस्थ रहते हुए समाजकी आध्यात्मिक सेवाके बहविध क्षेत्रोंमें अपना सहज-स्वभावी योग देते रहें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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