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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : १९ धर्म और समाजके सच्चे हितचिन्तक । .पं० हीरालाल जैन 'कौशल' मंत्री-अ० भा० दि० जैन विद्वत्परिषद् सम्माननीय पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य समाजके सर्वप्रथम व्याकरणाचार्य हैं। उस समय यह विषय अत्यन्त कठिन मानकर इस ओर छात्र जाते ही न थे। ऐसे विद्वान् को संस्थाओंमें स्थानकी कमी न थी, पर पण्डितजी समाजके उन गिने चुने विद्वानोंमेंसे हैं, जिन्होंने समाजको अपने जीवनयापनका आधार न बनाकर स्वतन्त्र (कपड़ेके) व्यवसायको अपनाया और उसमें अपनी ईमानदारी तथा सद्व्यवहारसे अपनी गहरी साख बनाई एवं सम्मानपूर्वक उन्नति करके अपनी स्थितिको सुदृढ़ बनाया। साथ ही अपनी योग्यता, सतत अध्ययन एवं गम्भीर चिन्तनके द्वारा समाजके प्रथम श्रेणीके वरिष्ठ विद्वानों में अपना सम्माननीय स्थान बनाया। आप समाजकी प्रत्येक गतिविधिसे सदा जडे रहे और उसमें योगदान देते रहे। व्याकरणाचार्यजी व्याकरणके अपूर्व विद्वान् होनेके साथ ही दर्शन तथा अध्यात्म आदिके भी प्रकांड पण्डित है। वे अपनी पैनी दृष्टि एवं सूक्ष्म पकड़के द्वारा प्रत्येक विषयका गम्भीरतासे मंथन करते हैं, तथा विषयका विश्लेषणकर सप्रमाण उसपर लेखनी उठाते हैं। उनके लिखित ग्रन्थोंमें यह सब बातें स्पष्ट दृष्टिगोचर होती हैं। वे शान्तस्वभावी, निरभिमानी, उदारहृदय, दिखावट-बनावटसे दूर सादगीपसन्द व्यक्ति हैं। धर्मके दृढ़ श्रद्धानी हैं पर कूरीतियों, कुप्रथाओं तथा पोपडमके सदा विरोधी रहे है । धर्म व समाजके सच्चे हितचिन्तक हैं । समाजकी सुप्रतिष्ठित संस्थाओंके अध्यक्ष एवं मंत्री आदि जिम्मेवारीके पदोंपर रहकर आपने समाजकी अनुपम सेवा की है । समाजके द्वारा आप कई बार सम्मानित हो चुके हैं। आप सच्चे देश भक्त भी हैं। आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में जेल जाकर देशको स्वतंत्र कराने में अपना योगदान दिया। विद्वानोंमें वे ऐसे प्रथम विद्वान है। आपका जीवन वस्तुतः एक आदर्श एवं अनुकरणीय है । इस आयु में भी आप साहित्य एवं समाज सेवाके कार्यमें लगे रहते हैं। भगवानसे प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों तथा इसी प्रकार समाज का हित करते रहें । मंगल कामनाएँ .पं० अनूपचन्द्र न्यायतीर्थ, जयपुर पूज्य पंडितजी पुरानी पीढ़ीके विद्वानों में अग्रगण्य है। जिस प्रकार आपने आर्षमार्गकी परम्परा निभाते हुए समाजको सत्साहित्य दिया उसी प्रकार स्वतंत्रता सेनानीके रूपमें राष्ट्रको अपने कांतिकारी एवं सुधारवादी विचारधारासे प्रभावित किया। युगानुसार नूतन-प्राचीन विचारोंके सामंजस्यसे युवापीढ़ीको धर्मकी ओर आकृष्ट किया है । सादा जीवन एवं उच्च विचार ही आपके जीवनका लक्ष्य रहा है। मेरी मंगल-कामना है कि आप युगों-युगोंतक हमें मार्गदर्शन देते रहें। बिना बाँसुरीके भी श्री बंशीधर अपनी मनमोहन तान सुनाते रहें । आपका अभिनन्दन जिनवाणीका अभिनन्दन है • डॉ० कन्छेदीलाल जैन, सम्पादक 'जैन सन्देश', रायपुर आपके सम्मानमें अभिनन्दन-ग्रन्थका प्रकाशन हो रहा है । यह जानकारी मुझे वाराणसीसे प्राप्त पत्रकसे हुई । प्रसन्नता हुई। आपने समाजसे स्वतंत्र रहकर कार्य किया, यह अच्छी बात है, गौरवपूर्ण है। समाज पर निर्भर न रहकर अपनी विद्वत्ताका उपयोग किया । परन्तु यदि आप व्यवसायके स्थानपर अध्यापन-कार्य करते तो आपको प्रतिभा तथा योग्यताका इससे कई गुना लाभ समाजको मिलता। आपका अभिनन्दन प्रकारान्तरसे जिनवाणीका अभिनन्दन है । इस कार्यक्रमके आयोजनकी रूपरेखासे मुझे प्रसन्नता हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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