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________________ १४: सरस्वती-वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ इनके विचारोंसे कोई इन्हें पुरातन-पंथी मानता है, कोई इन्हें नूतन व उग्रवादी । किन्तु उनके हृदयके द्वार सिद्धान्त और तर्कमें कसे विचारोंके लिये सतत खुले रहते हैं । हमारे चरित्र-नायक सब झंझटोंसे दुर आदर्श और धर्ममय गृहस्थ-जीवन यापन करते हैं। वे किसी संस्था या गुटसे जुड़े नहीं है, स्वतंत्र व्यवसाय करते हैं, इससे इनके विचारोंमें स्वतंत्रताका हम पुट पाते हैं और जो कहते हैं, स्पष्ट और बेलगाव, चाहे सुननेवालेको प्रिय हो या न हो। 'सत्यं शिवं' से डूबे उनके विचार रहते हैं, 'सुन्दरं' पर उनका ध्यान नहीं है। मेरी समझमें आवश्यकता है ऐसे मनीषी विद्वानोंके लेख, व्याख्यान और विचारोंका संकलन, जो सुसंपादित और प्रकाशित हो, जिससे सर्वसाधारण और विशेषकर नवयुवकोंको समुचित मार्ग दर्शन मिले । मैं अभिनन्दनीय विद्वान्के स्वास्थ्य और दीर्घ-जीवनकी कामना करता हूँ। सफल कार्यकर्ता और यशस्वी विद्वान .पं० नाथूलाल जैन शास्त्री, प्राचार्य, सरहुकमचंद दि० जैन संस्कृत महाविद्यालय, इन्दौर संस्कृत राष्ट्र भाषा या लोकभाषा प्रयत्न करनेपर भी नहीं हो सकी, इसका कारण उसके व्याकरणको क्लिष्टता है, बिना मुखाय किये उसके व्याकरणका उपयोग संभव नहीं है। सभी संस्कृत पद्योंका अर्थ भी सरलतापूर्वक बता देना किसी भी संस्कृतज्ञ विद्वान्की शक्तिके बाहर है। संस्कृत में लिख लेना और बोल लेना भी सहज नहीं है। ऐसी संस्कृत व्याकरणको प्रारंभसे आचार्यके षट्खंड तक संपूर्ण अध्ययन कर उसमें उत्तीर्णता प्राप्त कर लेनेका शायद प्रथम श्रेय पंजीको ही प्राप्त है। क्योंकि अन्य जो भी प्रसिद्ध विद्वान हैं, उसमें अधिक व्याकरण, न्याय आदिके षट्खंड उत्तीर्ण नहीं हुए हैं, फिर भी उन्हें व्याकरण, न्याय आदिके आचार्य पदसे संबोधित किया जाता है। पंडितजी साहित्य, जैन दर्शन आदिके भी निष्णात विद्वान हैं। राष्ट्रीय आन्दोलनमें सक्रिय भाग लेकर ६-७ बार आपने कारावास भी भोगा है। अ० भा० दि० जैन विद्वत् परिषद्के अध्यक्ष, नगर कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष आदि विशिष्ट पदोंपर रहकर आपने राष्ट्र, समाज एघं साहित्यके क्षेत्रमें खूब सेवायें की हैं। जैन शासनमें निश्चय और व्यवहार, जैन दर्शनमें कार्यकारण भाव आदि विषयोंपर आपके चिन्तनपूर्ण लेख एवं ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। जयपुर खानिया तत्त्वच में आपका प्रमुख भाग था। पण्डितजी सफल कार्यकर्ता और गशस्वी विद्वान् हैं। वे आर्थिक दृष्टिसे संपन्न और स्वावलम्बी होनेसे श्रीमान एवं धीमान् दोनों हैं। हमारा विद्वत् समाज आपसे गौरवान्वित है। इस अभिनन्दनके सुअवसरपर मैं उनका हार्दिक अभिनंदन एवं चिरायु कामना करता हूँ। कर्मठ विद्वान् • डॉ० लालबहादुर जैन, शास्त्री अध्यक्ष, शास्त्री परिषद्, दिल्ली दिगम्बर जैन समाजके प्रसिद्ध विद्वानोंमें श्री पण्डित बंशीधरजी व्याकरणाचार्यका अपना एक स्थान है, जिन्होंने अपने बौद्धिक परिश्रम और आगमिक सिद्धान्त ज्ञानसे मिथ्यावादियोंके प्रचार-प्रसारको खण्डित करके जिनवाणीकी रक्षा की है। आपका अभिनन्दन ग्रन्थ तो वस्तुतः बहुत पहले ही प्रकाशित होना था। परन्तु जो कुछ होना है वह प्रायः अपने समयके अनुसार हो होता है । आदरणीय पण्डितजीकी ज्ञान-गरिमा और गम्भीर आगम ज्ञानसे प्रभावित होकर मैं पुनः-पुनः उनका अभिनन्दन करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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