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________________ १ / आशीर्वचन, संस्मरण, शुभकामनाएं : १३ स्वतन्त्र विचारक एवं चिन्तक •पं० भवरलाल न्यायतीर्थ, सम्पादक 'वीर वाणी', अध्यक्ष, विद्वत्परिषद् . अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषदके भूतपूर्व मन्त्री एवं अध्यक्ष, सिद्धान्ताचार्य, व्याकरणाचार्य, न्यायतीर्थ, साहित्यशास्त्री आदि अनेक उपाधिधारी विद्वान् पं० बंशीधरजी बीनाका अभिनंदन-ग्रन्थ प्रकाशनकी योजना एक प्रशंसनीय कार्य है। यह अभिन्दन किसी व्यक्तिविशेषका नहीं, माँ सरस्वतीके एक उपासकका अभिनन्दन है, सम्मान है। पूज्य पं० जी स्वतन्त्र विचारक हैं, चिंतक हैं और निर्भीकतापूर्वक अपने विचारोंको प्रकट करते हैं। वृद्धावस्थामें भी अपने चिन्तन-मननके आधारपर तर्कों द्वारा अपने मन्तव्यको लोगोंके गले उतारने में सक्षम है। सिद्धान्तशास्त्री पं० फूलचन्द्रजी द्वारा रचित 'जैन तत्त्वमीमांसा' के उत्तरमें आपने 'जैनतत्त्व मीमांसा की मीमांसा' की रचना की थी। जैनदर्शनमें कार्यकारणभाव और कारक व्यवस्था नामक पुस्तक भी आपने लिखी है। आपने अनेक पत्रोंमें सैद्धान्तिक निबन्ध भी लिखे हैं। अभी वीरवाणीमें आपने "आगममें कर्मबन्धपर विचार" शीर्षक एक महत्त्वपूर्ण निबन्ध लिखा था, जिसके उत्तरमें समागत विद्वानोंके विचारोंपर 'कर्म सम्बन्धी स्वकीय दृष्टिका स्पष्टीकरण" शीर्षक लेख द्वारा आपने अपने मन्तव्यको समझानेका सफल प्रयत्न किया है। विचार-भेद / मान्यता-भेद भले ही आपकी रचनाओंसे हों, पर आपका चिन्तन तर्क प्रधान है। __पं० बंशीधरजी जहाँ सैद्धान्तिक चर्चाओंमें अपनी विशेषता रखते हैं वहाँ सामाजिक महत्त्वपूर्ण सुधारवादी क्रान्तिकारी विचारोंमें भी कम नहीं हैं । आप दस्सा पूजाधिकार, गजरथ-विरोध आदि आन्दोलनोंमें भी अगुआ रहे है । साथ ही राष्ट्र के स्वतंत्रता-आन्दोलनमें खूब भाग लिया है और सेवा की है । सन् १९३१ में ही गांधीजीके आन्दोलनमें कूद पड़े थे और सन् १९४२ में कृष्ण-मन्दिर की यात्रा भी की है, यातनायें सही हैं। . आपका जन्म ८४ वर्ष पूर्व हुआ। बचपनमें ही माता-पिताका वियोग सहना पड़ा। कठिन श्रम करके एक ऊँचे दर्जेके विद्वान् बने । परिस्थिति और संकटोंमें जूझने वाले ही तपे स्वर्णके समान निखरते हैं । पंडित जी ऐसे ही तपे, निखरे हुए पुरानी पीढ़ीके विद्वान हैं जिनपर समाजको गर्व है। पंडितजी स्वस्थ दीर्घजीवी हों और माँ सरस्वतीको इसी प्रकार सेवा करते रहें, यह मेरी हार्दिक कामना है। मैंने जैसा देखा-समझा .श्री नेमीचन्द्र पटोरिया, एम० ए०, एल-एल० बी०, बम्बई समाज-मान्य विद्वान श्री पं० बंशीधरजी व्याकरणाचार्य समाजके जाने माने अग्रणी विद्वान् है । वे न किसो गुट या किसी तबकेसे जुड़े या बँधे हैं। वे केवल उसीसे जड़े हैं जो सिद्धान्त व तर्क-संगत प्रतीत होता है। वे अपने विचार सरल और स्पष्ट शब्दोंमें बिना लगाव व दुरावके कह देते हैं इसीमें उनको विशेषता है। कभी-कभी उनके गंभीर विचार साधारण हस्थके पल्ले कम पड़ते हैं, किन्तु विद्वद्-मंडलोमें उनके विचारोंका उचित समादर होता है । आरम्भसे ही मेरे मनपर इनका प्रभाव पड़ा कि ये विद्वान् सरल प्रकृतिके हैं। परिधानों, खानपानमें, बोलचालमें, व्याख्यानमें वे सरलताके प्रतीक मुझे लगे। मानों वे एक खुली पुस्तक हैं। कहीं कोई छिपाव या दुराव नहीं है, जो कहते हैं स्पष्ट सरल शब्दोंमें कहते हैं । १-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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