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________________ ६८ : सरस्वती-वरवपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन-ग्रन्थ बीनाकी सभी संस्थाओंके मंत्री, उपाध्यक्ष एवं अब्बल पदपर रहे। जब चुनाव होते तो पण्डितजीके और हम लोगोंके सबसे अच्छे वोट आते । पण्डितजीने जब यहाँकी संस्थाओंका कार्यभार सम्हाला तो उनको रोकड़में कुछ हो रुपये मिले थे। लेकिन जब उन्होंने संस्थाओंसे अपना त्यागपत्र दिया तो उन सबको लाखोंकी सम्पत्तिवाली संस्था बनाकर छोडा । पण्डितजी तो पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारीसे कार्य करते थे। लेकिन जब समाजके कुछ लोगोंको उनकी लोकप्रियता सहन नहीं हुई तो परस्पर जातीयताको उलझा दिया गया। और अन्तमें पण्डितजीने सन् १९७१ में अपना सम्बन्ध तोड़ लिया। और समाजके पूर्ण आग्रहके बाद भी अब वे संस्थाओंका मामला हाथमें लेनेको तैयार नहीं होते । हमने भी पण्डितजीके साथ ही संस्थाओंसे अपना हाथ खींच लिया। इस सम्बन्धमें मुझे एक घटना और याद आती है कि कभी-कभी सागर जिलेके कलेक्टर एवं पंजीयन अधिकारी दसरे जिलेके विभिन्न टस्टों के अधिकारियोंसे कहा करते थे कि यदि ट्रस्टका प्रयास-संचालन देखना एवं सीखना हो तो श्री नाभिनन्दन दिगम्बर जैन हितोपदेशिनी सभा बीनाके मंत्री पं० बंशीधरजीके पास जाकर सीखिये और फिर मेरे पास आइये । हिसाब-किताबमें पण्डितजी कितने पक्के एवं व्यवस्थित हैं उसको वे अधिकारीगण बराबर सराहना करते रहे । श्री शाहजीने पण्डितजीको लोकप्रियताकी एक और घटना सूनायी। वे कहने लगे कि सन् १९४२के आन्दोलनमें पण्डितजीको लोकप्रियता देखकर बीनाको पुलिसको उनको बीनामें गिरफ्तार करनेका साहस नहीं हआ। लेकिन जब पण्डितजो सागरमें कचहरीका कार्य करके वापिस लौट रहे थे, तो बीना जंकशनपर आपका गिरफ्तार कर लिया गया । पण्डितजीके गिरफ्तारीके समाचार बिजलीकी तरह बीना शहरमें फैल गये । और रात्रिमें ही कम-से-कम दस हजारकी भीड़ बीना जंक्शनपर जाकर पण्डितजीकी जयके नारे लगाने लगी। पुलिसको चिन्ता हई कि कहीं भीड बेकाबू होकर तोड-फोड नहीं कर डाले, इसलिए पण्डितजीको आग्रहपूर्वक पुलिस बाहर लाई और जब पण्डितजीने भीडको वापिस लौटने के लिए कहा तभी लोगोंने बीना जंक्शन खाली किया। आपने अन्तमें कहा कि ऐसे कितने संस्मरण सुनाये जा सकते है। हम तो पण्डितजीके आदर्शोपर चलने वाले हैं और हमारा पूरा परिवार उन्हें समर्पित रहा है। उनके अभिनन्दनग्रन्थ प्रकाशित होनेके समाचार सुनकर हमें अत्यधिक प्रसन्नता हई है। हम तो उनकी दीर्धाय एवं यशस्वी जीवनकी ही मंगलकामना करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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