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________________ 2 / व्यक्तित्व तथा कृतित्व : 67 उसके बाद तो पंडितजीका स्नेह मुझे काफी मिला। श्रीलंकासे वापिस आनेपर उन्होंने बीनामें जो मेरा सत्कार किया कराया उससे तो मैं और भी अभिभूत हो गया। वस्तुतः पण्डितजोकी गुणग्राहिताने उनकी स्वाभिमानी वृत्तिमें चार चाँद लगा दिये। अध्यापन कार्यसे दूर रहकर भी विद्वत्ताको पनपाये रखनेका जो सुन्दर उदाहरण पंडितजीने प्रस्तुत किया है वह वेमिसाल है, अनुपम है। उनके इस उदाहरणका अनुकरण यदि उस समयके विद्वानोंने किञ्चित भी किया होता तो पण्डित-परम्पराको जो अपमानके घट समाजने जहाँतहाँ पिलाये, उसका साहस उसे नहीं हो पाता। और पण्डित-परम्पराको अक्षुण्ण बनाये रखनेकी समस्या भी मुखर नहीं हो पाती / दीनता और नैराश्यसे उभरने तथा स्वाभिमानके साथ जीवन यापन करते हुए शैक्षणिक और सामाजिक सेवा करनेके लिए स्वतन्त्र व्यवसायमें जुट जानेके अतिरिक्त कोई दूसरा सुन्दर विकल्प नहीं है। पचासी वर्षकी अवस्थामें भी पण्डितजी पूर्णतः स्वस्थ हैं। यह प्रसन्नताका विषय है। वे स्वस्थ रहें और अपने ज्ञानपुञ्जका प्रकाश प्रसृत करते रहें, यही हमारी मनोकामना है / संस्मरण * शाह अमृतलाल जैन, बीना संकलन * डॉ० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल श्री शाह अमृतलालजी जैन/बीना निवासी/आयु 67 वर्ष व्यवसाय किरानाके व्यापारी / श्री अमतलालजी पण्डित बंशीधरजीके साले हैं। बीनानिवासी होनेके कारण पिछले 60 वर्षोंसे पण्डितजीके घनिष्ट सम्पर्क में रहे तथा उनकी प्रत्येक गतिविधिको सूक्ष्म दृष्टिसे देखा है / जब मैंने पण्डितजीके विषयमें अपने संस्मरण सुनानेको कहा तो कहने लगे पण्डितजी आरम्भमें ही कठोर अनुशासन प्रिय थे. अपने सिद्धान्तोंके पक्के हैं तथा उनमें जरा भी ढिलाई पसन्द नहीं करते थे / यद्यपि मैं रिश्तेमें उनका साला है लेकिन उनका मेरे साथ भी वैसा ही अनुशासन प्रिय व्यवहार रहता था, जैसा अन्य व्यक्तियोंके साथ रहता था / आरम्भमें तो मुझे उनका व्यवहार जरा सख्त लगता था लेकिन कुछ समय पश्चात् उनका वही व्यवहार हमारे लिए अनुकरणीय बन गया। प्रश्न-आपने तथा आपके परिवारके अन्य सदस्योंने पण्डितजीके जीवनका किन-किन दिशाओंमें अनुकरण किया। उत्तर-पहले तो शाहजी प्रश्नका उत्तर क्या दिया जाये, इसको सोचने लगे। लेकिन कुछ देर बाद कहने लगे कि हमारे पूर्वज तो केवल अपने व्यवसायमें ही संलग्न रहा करते थे। न सामाजिक झगड़ोंमें पड़ते और न राजनीतिसे वे कोई सम्बन्ध रखते थे। किन्तु पण्डितजीकी सतत प्रेरणा एवं मार्गदर्शनसे हम लोग सामाजिक राजनैतिक एवं सार्वजनिक क्षेत्रोंमें कार्य करने लगे। तथा अपना व्यापार व्यवसाय करते हुए सामाजिक संस्थाओंके सभी पदोंपर कुशलतापूर्वक कार्य किया तथा सभी क्षेत्रोंमें पूर्ण ईमानदारीके काम करनेके कारण समाज एवं सार्वजनिक क्षेत्रमें हमने जो सम्मान प्राप्त किया उसके लिए हम पण्डितजीके पूर्ण आभारी हैं। प्रश्न-पण्डितजीकी लोकप्रियताके क्या उदाहरण दे सकते हैं ? उत्तर--क्यों नहीं / बीनामें पण्डितजीकी लोकप्रियता सदैव अपने सर्वोच्च शिखरपर रही / पंडितजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012047
Book TitleBansidhar Pandita Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Jain
PublisherBansidhar Pandit Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages656
LanguageHindi, English, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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